Thursday 2 January 2014

भ्रष्टाचार / Corruption

Corruption ki maar apna desh bahut dino se bhog raha hai aur iski jadein hamin ne daali hai...aur ham hi iska niwaaran kar sakte hai..ek aisi process hai jismein chain reaction hai aur har aadmi aaj ke date mein pareshaan hai. Isi pe ek roshni..


भ्रष्ट होती दुनिया भ्रष्ट होते लोग
खुदा की बनाई हुई दुनिया में
मतलबपरस्त हो गए है लोग ...
हर चीज़ को पाना है
हर मुकाम हासिल करना है
उस मंजिल पे पहुचने के लिए
अपना अस्तित्व इतना क्यों गिराना है ...
तुम दो मांगो वो चार मांगे
कोई छुपके मांगे तो कोई बेशर्मी से मांगे
माँगना भी तो भीख है
क्यूँ न इस भिखारी के हाथ काटे ...
किसी को अपने वर्चस्व की धौंस है
किसी को अपने ओहदे की धौंस है
अंधी भूख में ऐसे पागल हुआ है इंसान
इंसानियत तो गुम हुई न जाने कितने दूर कोस से ...
कानून भी बना हुआ था
आक्रोश भी खूब आया था
फिर क्यूँ नहीं कोई बदलाव आया
क्या स्वार्थ इंसान को इतना खा गया था ...
बेकार की बहस छोडो
औरों के गिरेबां में झांकना छोडो
और अपने में झांको
फिर अपने ईमान को टटोलो ...
गर तुमने कभी कोई लालच को जन्म नहीं दिया
अपने क्षणभंगुर चाहत की पूर्ति के लिए किसी को नीचा नही किया
तो आओ, ये लो ,
और उस भ्रष्टता पे सबसे पहला पत्थर तुम मारो ..!

5 comments:

  1. ठीक बात कही हैं अपने पर क्या कभी इस बात पर भी गौर किया है की अपने कार्यो की पूर्ति हेतु हम ही रिसवत देते है...
    जहाँ ५०० का चालान बन रहा हो हम यदि १०० मे काम हो रहा हो ५०० कौन देगा सोच कर हम ही उनकी हिम्मत बड़ा देते है फिर ये सिलसिला चलता ही रहता है, कोई नही कहता की नही आप तो चालान काटो. बस, मेरा चालान काटो. मैं आगे से ध्यान रखूँगा/ रखूँगी पर अभी तो.... बस चालान
    और कहते हैं की भ्रष्टाचार बड़ रहा हैं; ना ही हम कभी उन व्यक्तियो को रोकते जिन्हे हम यू ही नीचे से पैसे लेते या देते देखते हैं, तब तो हम गाँधी जी के बंदर बन जाते हैं.

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  2. xcatly Ritu..sahi baat pr prahaar kia hai tumne..isliye maine ye kaha ki ye bilkul chain reaction k jaisi hai...aur isliye maine kaha bhi ki hami ne shuru kia hai to hamari hi zimedaari banti hai isey jad se ukhaad fekne ki..filhaal to kahin kahin shuruat ho chuki hai..aage dekhte hain..amny thnx for the comments!

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    1. Ji meine apki baat se sahmat hokar hi wo shabad kahe the.
      N na sirf kahe the balki me inka palan bahut hi kadaai se kai salo se kar rhi hu.

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    2. बहुत खुब भाई..

      मुझे अपनी एक अभिव्यक्ती याद आ गई .. !

      भृष्टाचार का आचार हर आदमी चखते जाता है
      कभी लेने में, कभी देने में हाथ पढता है !


      बहुत सही. .. ऐसे ही विषय यही स्याही उठाये तो उसका एक अलग रुप होगा ... !

      सार्थक स्रजन !

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    3. बहुत बहुत आभारी हूँ अनुराग भाई। अब चाहे किसी को पसंद आये न आये मैं कुछ नही कर सकता। साहित्य आइना भी है तो दाग़ भी दिखेंगे , जिनको आईने से चिढ़ होगी वो ख़ुद ही अपनी शक्ल हटा लेंगे। आप लोग बस हौसला अफज़ाई करते रहिये।

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