Sunday 9 October 2016

Lyric.. मोहब्बत नहीं मिलती...!!

मोहब्बत नहीं मिलती..!!
फ़क़त किसी को चाहने से मोहब्बत नहीं मिलती,
दिल में ना हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती।
चँद लम्हे गुज़ार लेने से,
लटों को संवार देने से,
गेसुओं में खोकर मोहब्बत नहीं मिलती,
जिस्म बिकते है, मोहब्बत नहीं मिलती।
दिल में न हो....।।
जब सीरत बदनसीब हो,
और फ़रेब करीब हो,
सूरत की चमक में मोहब्बत नहीं मिलती,
सिलवटें मिलती है, मोहब्बत नहीं मिलती।
दिल में न हो...।।
रौनकें अब हैं मशगूल,
और इश्क़ है फ़िज़ूल,
एहसासों में अब मोहब्बत नहीं मिलती,
सब खो कर भी मोहब्बत नहीं मिलती।
दिल में न हो...।।
©Abhilekh

Friday 7 October 2016

सब तेरे नाम...

सब तेरे नाम...

यह शफ़क़ शाम हो रही है अब,
शब भी तेरे नाम हो रही है अब।

ठहर जाओ दो घडी मेरी खातिर,
इंतज़ार सर-ए-आम हो रही है अब।

अभी तो रौशन हुई है महफ़िल,
शाम रँग-ए-जाम हो रही है अब।

तेरे लबों से छलक कर बिखरा हूँ,
चाहतें मेरी पैग़ाम हो रही है अब।

एक रात बना कर भुला दो मुझे,
यहाँ सहर नीलाम हो रही है अब।

©Abhilekh

Note: 1st line is from Dushyant Kumar's

Wednesday 5 October 2016

हर चेहरा... ।।

हर चेहरा...।।

हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
फिर भी हम सबसे एक सवाल होता है।

जो दौड़ रहा है हम सबकी रगों में लहू,
हर जिस्म में वो क्यों सिर्फ लाल होता है।

जिंदगी रहने तक जो इतने घाव देते हो,
फिर जनाज़े पर क्यों नहीं बवाल होता है।

ज़रा देखना कभी रोटियों को बाँट कर,
चँद निवालों से यहाँ भूख हलाल होता है।

हर उरूज का एक दस्तूर है यहाँ जानिब,
उन्ही रास्तों से वापसी में ज़वाल होता है।

©Abhilekh

नोट: पहली लाइन : "हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है" यह मुन्नवर राणा जी के नज़्म से ली गयी है।

Thursday 29 September 2016

Lyric.... न आग़ाज़, न अंजाम..!

न आग़ाज़, न अंजाम..!!
इकतरफ़ा इश्क़ के सफर में,
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
बुझ कर भी उम्मीद से,
अनजाने एहसास का,
वजूद तो होता है, कोई नाम नहीं होता।
इकतरफ़ा .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
खुद से रुस्वा हो कर,
जज़्बातों को बिना उधेड़े,
ऐसी बेवफ़ाई पर इल्ज़ाम नहीं होता।
इकतरफ़ा .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
तन्हायी भी होती है,
परछायी भी होती है,
मेरे मैखाने में कोई जाम नहीं होता।
इकतरफ़ा इश्क़ .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
©Abhilekh

Monday 26 September 2016

घर बनाने में...।

घर बनाने में...।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
और लुटे जाते है रह-बर बनाने में।

स्याह चेहरों पर देखो रंगीन नक़ाब,
अब क़त्ल होते है खंजर बनाने में।

कमज़र्फ है यहाँ अब सबकी आदतें,
एक अंदाज़ है अब नज़र चुराने में।

कुरेदने की कवायद है कुछ ऐसी,
मिलते है कई एक शज़र गिराने में।

अपनों ने खींच ली है वहाँ सरहद,
जहाँ ईंटें जुडी थी शहर बसाने में।

©Abhilekh

कृपया ध्यान दें , ऊपर की एक पंक्ति बशीर बद्र साब की है "लोग टूट जाते है एक घर बनाने में"।

Saturday 24 September 2016

जवाब क्या देते...।

जवाब क्या देते...।

खुदगर्ज़ी के मारे थे, हिसाब क्या देते,
सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते।

संगदिली में तुम मसरूफ रहे इस कदर,
तुम्हारी वफ़ाओं का हिसाब क्या देते।

फिर से बुत-ए-आदम जब हो चुका हूँ
अपनी तन्हाईयों को हिजाब क्या देते।

मेरे ही ज़ख्म कुरेदे हैं मेरी रूह को,
अपनी आवारगी को ख्वाब क्या देते।

भीगती है बारिश भी अश्कों में खूब,
तेरी इस इनायत को शराब क्या देते।

©Abhilekh

नोट: सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते... सिर्फ यह मुनीर नियाज़ी जी के ग़ज़ल से ली गयी है।

Wednesday 21 September 2016

आज उजाला होगा....।

आज उजाला होगा ....।

Gulzaar saab ki 1 line se kaafiya milana tha, usi basis pr likhne ki koshish ki thi, aap sabhi bataiye kaisi hai...

चाँदनी के सिर से सरका आज दुशाला होगा,
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा।

अमावस भी बादलों की ओट से झाँका होगा,
तभी चाँदनी ने चाँद को घर से निकाला होगा।

रात की चादर में लिपटे हैं ऐसे इतने सितारे,
जैसे किसी महबूब ने ओढ़नी गिराया होगा।

शहर की रौशनी भी चमक उठी है कुछ यूँ
शमा को ज़रूर आफताब नज़र आया होगा।

तमाम कसीदें गढ़ देता हूँ अक्सर बेहयायी में,
ज़रा देखो, लफ़्ज़ों ने कैसे आज़माया होगा।।

©Abhilekh

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