This was written on the occasion of Independence Day & this Poetry is one of my published poetry. In this poetry, I have tried to say that since we are now Independent, we should be very alert to maintain it. We achieved our freedom after lot of struggle so we should see that Freedom should be treated as an opportunity to suppress weaker one or it should not be used for any inhuman practices..
Pls do read & give your comments...
...यह अपनी आज़ादी।
सब मुक्त हैं और अब नहीं कोई किसी पर निर्भर,
हम सब हैं आज़ाद और हमारी है यह अपनी आज़ादी ..!
जीने के लिए पहले जैसे मोहताज नहीं,
अपने दम पर हासिल की है यह आज़ादी ..!
१९४७ से शुरू हुआ था यह सफ़र,
आज ६६वें पायदान पर खड़ी है यह आज़ादी ..!
हर दौर से जुझती और उबरती,
कई संघर्षमयी पलों से गुज़री है यह आज़ादी ..!
अब जब सब स्वाधीन और स्वछन्द है,
फिर क्यूँ अब उदंड सी लगने लगी है यह आज़ादी ..!
अब बेलगाम और अनुशासनहीन सी इंसानियत,
मत्लब्परस्ति में हमबिस्तर हो गयी है यह आज़ादी ..!
लोभ-क्षोभ और राग-द्वेष में लिप्त समाज ,
किसी के हक़ को छिनना ही बन बन गयी है यह आज़ादी ..!
मिलीभगत से बिना मापदंड के व्यवयसायिक दौर में,
खुद के खोदे हुए अंधे कुएँ की तरफ बढ़ रही है यह आज़ादी ..!
खुलेआम अंधे कानून पर रिश्वत की चादर डाल,
भ्रष्ट सी सरकार खोखला सा साबित कर रही यह आज़ादी ..!
अब अगर नहीं सजग हुए ,
तो फिर कहीं इतिहास न बन जाये यह आज़ादी ..!
एकजुट हो नया बलाव लाना चाहिए,
तभी सलामत रहकर कुछ रंग खिलाएगी यह आज़ादी ..!
Its only we people who have to work towards a better India..so Lets be united & be Indian..!
Be Blessed & Be Happy :)
sahi hai abhi per sahi galat ka pat kahan chalta hai is jamane me sab mukhote pahne huy gai yahan
ReplyDeleteTumhari baat bhi kaafi had tak sahi hai Rakhi..
Deleteअभिलेख जी
ReplyDeleteबेहद सम्वेदनशील मुद्दा है आजादी ! जिसे पाने कठोर जतन किये गए ...और सही है विगत 6दशक में ना ना प्रकार की आरजकताओ ने विष दंश मारे ।
आपकी अभिव्क्ती ने भाव शिल्प के जरिये खूब उल्लेखित किया । आशा का वृताकार जरुर उस बिंदु तक आएगा जब श्रृंगार के अलावा भी लेखनी को टिप्पणी से प्रोत्सहित किया जाएगा ।
वरना
अपनी अनदेखी ही हमे गिराती है,
लालच की भेंडिया पलती जाती है!
आज भी प्रदीप से कवि रो रहे हैं,
चोली के पीछे रोयल्टी खाती है!
एक दिन में ही याद कर लेते हैं,
शहीदों की कुर्बानी भूलाइ जाती है!
याद रही मुन्नी शिला सुशीला ही,
दुहाई भी खुल के न दी जाती है!
रुदाली ही बनेंगी वो धरा देश की भी,
जहां अफीम समाज में उगाई जाती है !
मुझे खुशी कुछ मेरे मित्र बढ़ते हैं आगे
भगत की आँख खुशी से नम हो जाती है
बस....इतने कहने पर आप बहुत को समझिये भाई ।
जातीतौर पर कहूँ तो ये विषय बेहद चुनोतिपूर्ण है।
और मैं जानता हूँ आप सहासी हैं तो आगे भी भाव उभरते आयेंगे ।
अशेष शुभकामनाएं ।
अनुराग त्रिवेदी एहसास
Bahut bahut shukria Anurag Bhai! Aapki baat 100% sacha hai..aapne jo panktion mein sandesh ghola wo bemisaal hai!
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