Pages

Sunday, 29 June 2014

कन्या और उसके रूप...

कभी देवी हूँ इस नभ के नीचे, कभी सिर्फ स्त्री हूँ धरा पर।

बोझ हूँ मैं जिम्मेदारियों के नीचे, और एक खर्च हूँ हर परिवार पर।

कभी कमसिन हूँ कलम के नीचे, और हवस हूँ  बिस्तर पर।

बचपन गुम मेरी मज़दूरी के नीचे, क्यूँकी गरीबी है मेरे जिस्म पर।

शिक्षा बेपरवाह है ज़रूरत के नीचे, लेकिन रोज़गार का बोझ है मेरे सिर पर।

No comments:

Post a Comment