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Saturday, 26 July 2014

A Published Anthology निर्झरिका 3/5

गुमशुदा एहसास।

कुछ मेरे एहसास थे जो आज गुमशुदा से हैं,
मुझसे नाराज़ हैं या फिर तुझसे जुदा से हैं,
... बस इस बात का इल्म नही।

जो मचलते थे कभी बखूबी तेरे मिलने पर,
इतराते थे मदमस्त हो तेरी मुस्कान पर,
... अब उनकी परछाई भी नही।

वो एहसास जो मेरे जीने की वजह थे,
तेरे वादों के सहारे जो कभी मचलते थे,
... आज उनका कोई पता ही नही।

वो जज़्बातों का कारवाँ जो दूर तक चला,
कभी अकेले दौड़ा तो कभी साथ चला,
... आज उनका कोई निशाँ तक नही।

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