....परिंदों की तरह।
खानाबदोश सी ज़िन्दगी में,
अपना आशियाँ बनाते हैं,
.... परिंदों की तरह।
ज़िंदा रहने की जद्दोजहद में,
रोज़ नया मुक़ाम तलाशते हैं,
.... परिंदों की तरह।
अनजानी सी राहों में,
कितनों से कई रिश्ते जुड़ जाते हैं,
.... परिंदों की तरह।
किस्मत है वक़्त के भरोसे,
फिर भी कदम आगे बढ़ाते हैं,
.... परिंदों की तरह।
नियती है ज़िन्दगी की चलने में,
फिर भी कुछ पल रुक कर रास्ता तय करते हैं,
.... परिंदों की तरह।
दुनिया उलझी है रिश्तों में,
फिर भी चह-चहा कर मिठास घोलते हैं,
.... परिंदों की तरह।
छूटते रिश्तों के सफ़र में,
ज़िन्दगी बेफ़िक्री से जिए जाते हैं,
.... परिंदों की तरह।
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