Pages

Thursday, 14 May 2015

नयी जड़ें // गूँज an anthology

नयी जड़ें...

खोखले उसूलों से पनपी है,
कुछ आदर्श की नयी पत्तियाँ..
सूखे शाखों सी शख्सियत को,
फ़िर भी ख़ुद पर गुमान है।

वक़्त की बारिश में भीगने के बावजूद,
संकृड़ता की हवा में झूमते है..
कुछ ऐसे ही झुरमुट है इनके आस-पास,
इनको इसी बाग़ पर गुमान है।

ज़मीं के नीचे तो हकीक़त की ही जड़ें थी,
लेकिन उम्र और बदलते वक़्त के साथ,
दकियानूसी सोच ने अपने को फैला लिया है।

अब इसे उखाड़ें तो जड़ों का अफ़सोस होगा,
इसलिए पहले जड़ों की नुमाइश लगाते है,
तब नए सृजन का बखूबी संचार होगा।।

#abhilekh

No comments:

Post a Comment