घर बनाने में...।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
और लुटे जाते है रह-बर बनाने में।
स्याह चेहरों पर देखो रंगीन नक़ाब,
अब क़त्ल होते है खंजर बनाने में।
कमज़र्फ है यहाँ अब सबकी आदतें,
एक अंदाज़ है अब नज़र चुराने में।
कुरेदने की कवायद है कुछ ऐसी,
मिलते है कई एक शज़र गिराने में।
अपनों ने खींच ली है वहाँ सरहद,
जहाँ ईंटें जुडी थी शहर बसाने में।
©Abhilekh
कृपया ध्यान दें , ऊपर की एक पंक्ति बशीर बद्र साब की है "लोग टूट जाते है एक घर बनाने में"।
No comments:
Post a Comment