Saturday, 24 September 2016

जवाब क्या देते...।

जवाब क्या देते...।

खुदगर्ज़ी के मारे थे, हिसाब क्या देते,
सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते।

संगदिली में तुम मसरूफ रहे इस कदर,
तुम्हारी वफ़ाओं का हिसाब क्या देते।

फिर से बुत-ए-आदम जब हो चुका हूँ
अपनी तन्हाईयों को हिजाब क्या देते।

मेरे ही ज़ख्म कुरेदे हैं मेरी रूह को,
अपनी आवारगी को ख्वाब क्या देते।

भीगती है बारिश भी अश्कों में खूब,
तेरी इस इनायत को शराब क्या देते।

©Abhilekh

नोट: सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते... सिर्फ यह मुनीर नियाज़ी जी के ग़ज़ल से ली गयी है।

Wednesday, 21 September 2016

आज उजाला होगा....।

आज उजाला होगा ....।

Gulzaar saab ki 1 line se kaafiya milana tha, usi basis pr likhne ki koshish ki thi, aap sabhi bataiye kaisi hai...

चाँदनी के सिर से सरका आज दुशाला होगा,
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा।

अमावस भी बादलों की ओट से झाँका होगा,
तभी चाँदनी ने चाँद को घर से निकाला होगा।

रात की चादर में लिपटे हैं ऐसे इतने सितारे,
जैसे किसी महबूब ने ओढ़नी गिराया होगा।

शहर की रौशनी भी चमक उठी है कुछ यूँ
शमा को ज़रूर आफताब नज़र आया होगा।

तमाम कसीदें गढ़ देता हूँ अक्सर बेहयायी में,
ज़रा देखो, लफ़्ज़ों ने कैसे आज़माया होगा।।

©Abhilekh

Saturday, 28 November 2015

Lyrics: रात सी ज़िन्दगी।

रात सी ज़िन्दगी।
Ek shaam se judaa ho chukaa..
Ab ek bhor se bichhadna hai..
In faaslon mein khokar khud ko...
Mujhe Gumshuda raat sa guzarna hai...

एक शाम से जुदा हो चुका..
अब एक भोर से बिछड़ना है..
इन फासलों में खोकर खुद को...
मुझे गुमशुदा रात सा गुज़रना है..!

Taaron ki tanahayion mein..
Chaand ke fareb mein..
Jugnon ki beparwahi ke saath..
Mujhe tanhaa raat sa guzarna hai..

तारों की तन्हाईयों में..
चाँद के फरेब में..
जुगनुओं की बेपरवाही के साथ..
मुझे तन्हा रात सा गुज़रना है..

Shaakhon ki kaanaafusi hai..
Sard hawaon mein Chaaplusi hai...
Shama jal na jaaye kahin..
Mujhe Thithurte waqt sa guzarna hai..

शाखों की कानाफूसी है..
सर्द हवाओं में चापलूसी है..
शमा जल न जाए कहीं..
मुझे ठिठुरते वक़्त सा गुज़रना है..!!

©Abhilekh

Thursday, 5 November 2015

Lyrics: कारवाँ / Karwaan

कारवाँ
Ek karwaan tha jo guzar gaya,
Mera hamsafar tanha guzar gaya..
Kaha tha usne intezaar ke liye,
Aur intezar bewaqt guzar gaya..

एक कारवाँ था जो गुज़र गया,
मेरा हमसफ़र तन्हा गुज़र गया..
कहा था उसने इंतज़ार के लिए,
और इंतज़ार बे-वक़्त गुज़र गया..

Kaha tha chalenge saath har pal,
Waqt ke bahane har ehsaas guzar gaya..
Ab har hulchal mein hai khaamoshi,
Bas us tanhai ka safar guzar gaya..

कहा था चलेंगे साथ हर पल,
वक़्त के बहाने हर एहसास गुज़र गया..
अब हर हलचल में है खामोशी,
बस उस तन्हाई का सफ़र गुज़र गया..

Chhoo kar guzarti hai teri khusbu,
Jaise teri yaadon ka mausam guzar gaya..
Ab ek karwaan nikla hai fir se,
Ya mai hi khada raha aur sara jahaan guzar gaya...!!

छू कर गुज़रती है तेरी खुशबु,
जैसे तेरी यादों का मौसम गुज़र गया..
अब एक कारवाँ निकला है फिर से,
या मैं ही खड़ा रहा और सारा जहाँ गुज़र गया..!!

©Abhilekh

Saturday, 24 October 2015

Jalwa....

Jalwaa
Tanhaaiyon mein jo simtaa thaa ishq,
Teri berukhi ki ibaadat ka kamaal thaa..

Kutartaa thaa khud ke ehsaason ko,
Sangdili kaa fir bhi mujhse misaal thaa..

Mai gumshudaa rahaa labon ki giraft mein,
Thi Maayusi yateem aisa mera jalaal thaa..

Tu de tohmaton ki duaayen behisaab,
Zindagi kyu chand rahi yahi malaal thaa..

©Abhilekh

Friday, 16 October 2015

बदलते वक़्त...

आज ज़माने में हर किसी के अंदाज़ बदले हैं..
कोई नज़र-अंदाज़ है तो कोई मसरूफ़ियत में बदले हैं..

सब अपनी अहमियत से बखूबी वाकिफ़ हैं..
इस मिजाज़ में सब एक दूजे से मिले बगैर बदले हैं..

इंसान हूँ और तमाम जद्दोजहद है ज़हन में..
इस खुमारी में हर किसी के तेवर बदले हैं..

2 घडी बेवफ़ाई को तू भी आज़मा ले ऐ साक़ी..
यहाँ तो हमराज़ ने भी कई बिस्तर बदले हैं...!!

Aaj zamaane mein har kisi ke andaaz badle hain..
Koi nazar-andaaz hain to koi masrufiyat mein badle hain..

Sab apni ahmiat se bakhubi waaqif hain..
Is mijaaz mein sab ek duje se mile bagair badle hain..

Insaan hun aur tamaam jaddojahad hai zehan mein..
Is khumaari mein har kisi ke tevar badle hain..

2 ghadi bewafayi ko tu bhi aazmaa le ae saaqi..
Yahaan to humraaz ne bhi kai bistar badle hain..!

#Abhilekh

Tuesday, 13 October 2015

एक सफ़र।

एक सफ़र।

निकली जो सड़क पता नहीं किस ओर की थी..
मंज़िल क्या पता, पता नहीं किस छोर की थी..

भटकते से कंकड़ उनपे कुछ निखरे थे..
और ज़िन्दगी लड़खड़ायी अचानक एक भोर सी थी..

न रास्ते ख़त्म होने थे न आगे रुकना था..
फिर भी ज़िन्दगी की नब्ज़ किसी डोर सी थी..

बढ़ते कदम को घाव और नर्म एहसास भी मिले..
लेकिन मेरे हौसले का शोर पुरे ज़ोर की थी..

वक़्त आज़माता रहा मुझे के मेरी उम्र कम थी..
और मेरी किस्मत किसी ख़ुशक़िस्मत चोर सी थी..!!

Nikali jo sadak pata nahi kis oar ki thi..
Manzil kya pata, pata nahi kis chhor ki thi..

Bhatakte se kankad unpe kuchh nikhre the..
Aur zindagi ladkhadayi achanak ek bhor si thi..

Na raaste khatm hone the na aage rukna tha..
Fir bhi zindagi ki nabz kisi dor si thi..

Badhte kadam ko ghaaw aur narm ehsaas bhi mile..
Lekin mere hausle ka shor pure zor ki thi..

Waqt aazmaata raha mujhe ke meri umra kam thi..
Aur meri kismat kisi khushkismat chor si thi..!!

#Abhilekh

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