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Monday, 22 December 2014

ख्याल-ए-इश्क / काव्यशाला an anthology

ख्याल-ए-इश्क़।

मुख़्तसर सी मुलाक़ातों का सिलसिला देखो,
कोई मेरे मुक़द्दर में अचानक से शामिल हो गया।

हम लम्हें गुज़ारते रहें उनके तस्सवुर में,
गुज़िश्ता पलों के साथ कोई मेरा हमदम हो गया।

कल तक कोई ख़्वाबों-ख़यालों में भी नही था,
आज कैसे एक पल में वह मेरा हम-साया हो गया।

अब तो डूबे हैं उनकी आशिक़ी में कुछ ऐसे,
इबादत-ए-इश्क़ में मेरा सनम ही मेरा ख़ुदा हो गया।

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