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Saturday, 27 December 2014

अंदाज़-ए-मोहब्बत / काव्यशाला an anthology

अंदाज़-ए-मोहब्बत।

मादक हो, बहुत शोख हो,
तितली से भी ज़्यादा तुम चँचल हो।

कोमल हो, बहुत मासूम हो,
ओस की बूँद से भी ज्यादा नाज़ुक हो।

यह तुम्हारे अलसाये से गेसू,
बेपरवाह हो तुम्हारे रुखसारों पर,
बलखाते है, तो कभी इतराते है।

अपनी शरारती अदाओं से,
हमें भी अक़्सर बहकाते है।

थामता हूँ जब भी तुम्हें,
वक़्त को जैसे पर लग जाते है।

सोचता हूँ रोज़ तुम्हे चूमूँ,
और मेरे इस ख्याल भर से,
ख़ुदा के भी तेवर बदल जाते है।

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