……बस तुम्हें चाहता हूँ।
आज कुछ रुमनियत लिखना चाहता हूँ,
तुम्हें अपने लफ़्ज़ों में पिरोना चाहता हूँ।
ख्याल हो तुम मेरा एहसास हो तुम,
इस मोहब्बत को ताउम्र जीना चाहता हूँ।
इबादत हो तुम मेरा ख़ुदा हो तुम,
क़ल्मा बनाकर तुम्हें रोज़ पढ़ना चाहता हूँ।
मिलते है रोज़ और भी हुस्न नज़ारों में,
सिर्फ तुम्हें अपनी परछायीं बनाना चाहता हूँ।
अब आकर थाम लो मेरा हाथ उम्र भर के लिए,
जहाँ में मोहब्बत का अंदाज़ दिखाना चाहता हूँ।
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