तू घुल चुकी थी साँसों में..
और मैं तुझपे सराबोर था...
और मैं तुझपे सराबोर था...
शबनमी जिस्म थी तर-ब-तर..
और रुमानियत का आलम पुरज़ोर था...!
और रुमानियत का आलम पुरज़ोर था...!
मैं पीता रहा तुझे क़तरा क़तरा..
तेरी हर घूँट में दबा सा शोर था...
तेरी हर घूँट में दबा सा शोर था...
जिस्म की सर्द रातें लिपटी रही..
साँसों की गर्मी से रागों में एक भोर था...!
साँसों की गर्मी से रागों में एक भोर था...!
तू पिघल कर बिस्तर सी रही..
और मैं तुझ में गुमशुदा हर ओर था...
और मैं तुझ में गुमशुदा हर ओर था...
अंगड़ाई की पहली पहर ली तुमने..
और लबों में ज़िन्दगी दबाये मोहब्बत मेरी ओर था।
और लबों में ज़िन्दगी दबाये मोहब्बत मेरी ओर था।
©Abhilekh
#Abhilekh
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