ज़िन्दगी सी तुम...
Milo tum aksar kuch alag andaaz se..
Ya to zindagi ban ke. Ya manzil ban ke.
Milkar fir thahar jao alag andaaz se..
Ya to manzar ban ke. Ya lamha ban ke.
Ya to zindagi ban ke. Ya manzil ban ke.
Milkar fir thahar jao alag andaaz se..
Ya to manzar ban ke. Ya lamha ban ke.
मिलो तुम अक्सर कुछ अलग अंदाज़ से..
या तो ज़िन्दगी बन के, या मंज़िल बन के..!
मिलकर फिर ठहर जाओ अलग अंदाज़ से..
या तो मंज़र बन के, या लम्हा बन के..!!
या तो ज़िन्दगी बन के, या मंज़िल बन के..!
मिलकर फिर ठहर जाओ अलग अंदाज़ से..
या तो मंज़र बन के, या लम्हा बन के..!!
Zindagi ban gayi to manzil bhi mil jayegi..
Tere saath bitaaye lamhe..
Khud misaal-e-manzar kahlaayegi..!
Tum bikharna bhi to mujhpe hi bikharna..
Ya to libaas ban ke. Ya jism ban ke.
Aur simatnaa bhi mujhme befikar hokar..
Ya to rooh ban ke. Ya saans ban ke.
Tere saath bitaaye lamhe..
Khud misaal-e-manzar kahlaayegi..!
Tum bikharna bhi to mujhpe hi bikharna..
Ya to libaas ban ke. Ya jism ban ke.
Aur simatnaa bhi mujhme befikar hokar..
Ya to rooh ban ke. Ya saans ban ke.
ज़िन्दगी बन गयी तो मंज़िल भी मिल जायेगी..
तेरे साथ बिताये लम्हे,
खुद मिसाल-ए-मंज़र कहलाएगी..!
तुम बिखरना भी तो मुझपे ही बिखरना..
या तो लिबास बन के, या जिस्म बन के..!
और सिमटना भी मुझमे बेफिक्र होकर..
या तो रूह बन के, या साँस बन के..!!
तेरे साथ बिताये लम्हे,
खुद मिसाल-ए-मंज़र कहलाएगी..!
तुम बिखरना भी तो मुझपे ही बिखरना..
या तो लिबास बन के, या जिस्म बन के..!
और सिमटना भी मुझमे बेफिक्र होकर..
या तो रूह बन के, या साँस बन के..!!
Tere tasawuur mein guzra har waqt kamyaab hai.
Kis lafz mein tujhe bayaan karun..
Tera naam to har dua se naayaab hai..!
Ab apni but-parasti se mujhe azaad karo..
Ya to khudaa ban ke. Ya to ham-saya ban ke.
Ek aadat si meri zindagi mein shaamil ho jao..
Ya to alfaaz ban ke. Ya koi dua ban ke..!
Kis lafz mein tujhe bayaan karun..
Tera naam to har dua se naayaab hai..!
Ab apni but-parasti se mujhe azaad karo..
Ya to khudaa ban ke. Ya to ham-saya ban ke.
Ek aadat si meri zindagi mein shaamil ho jao..
Ya to alfaaz ban ke. Ya koi dua ban ke..!
तेरे तस्सवुर में गुज़रा हर वक़्त कामयाब है..
किस लफ्ज़ में तुझे बयाँ करूँ,
तेरा नाम तो हर दुआ से नायाब है..!
अब अपनी बुत-परस्ती से मुझे आज़ाद करो..
या तो खुदा बन के, या तो हम-साया बन के..!
एक आदत सी मेरी ज़िन्दगी में शामिल हो जाओ..
या तो अल्फ़ाज़ बन के, या कोई दुआ बन के..!!
किस लफ्ज़ में तुझे बयाँ करूँ,
तेरा नाम तो हर दुआ से नायाब है..!
अब अपनी बुत-परस्ती से मुझे आज़ाद करो..
या तो खुदा बन के, या तो हम-साया बन के..!
एक आदत सी मेरी ज़िन्दगी में शामिल हो जाओ..
या तो अल्फ़ाज़ बन के, या कोई दुआ बन के..!!
©Abhilekh
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