शुक्तिका प्रकाशन की हिंदी साहित्य विशेषांक "निर्झारिका" में मेरी 5 कविताओं को प्रकाशित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप लोगों के समक्ष पेश कर रहा हूँ। उम्मीद है पसंद आएगी...
वादों का जनाज़ा।
वादे...जो पुरे न हो सके,
कुछ तुमने किये तो कुछ मैंने किये थे।
वादे...जो मुक़म्मल न हो सके,
कभी वक़्त की कमी रही कभी खुद बहुत रफ़्तार में रहे।
वादे...जो वफ़ा न कर सके,
कभी रिश्तों की पैरवी थी तो कभी खुद रिश्तों से परे थे।
वादे...जो अपना वजूद न पा सके,
कभी जज़्बातों में बह गए तो कभी उनको ही भूल गए।
वादे...जो कभी अपने न हो सके,
कभी एहसासों के साथ थे तो कभी एहसास ही साथ नही थे।
वादे...जो फ़ौलाद न हो सके,
कभी खुद के लिए टूटे तो कभी किसी रिश्ते के लिए।
वादे...जो दम भर भी न जी सके,
कभी आसुओं में बहे तो कभी पन्नों पर स्याही बन बिखर गए।
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