मौसम का तकाज़ा...
वक़्त की चिलचिलाती गर्मी से,
जब कुछ एहसास मुरझाए..
मैंने सोचा क्यूँ न आज,
ख्यालों के फ्रिज को शुरू किया जाए।
क्या पता, इसी बहाने..
कुछ ठंडी उम्मीदों से दिल बहल जाए।
जैसे ही दरवाज़ा खोल..
जज़्बातों की रौशनी चहक उठी।
देखा, उम्मीदों की टोकरी भरी पड़ी थी..
मैंने सोचा कुछ हल्का ही सही..
अभी सिर्फ़ एक टुकड़े को उठाया था..
की बाकियों ने कयास वाली शक्ल बना ली।
मुझे लगा शायद यह ज़्यादती हो जाएगी..
इसलिए वापस रख दिया।
बस यादों से भरी एक बोतल ली..
दरवाज़ा बंद किया और वापस कुर्सी पर आ गया।
गटागट उतार ली थी पूरी बोतल ज़हन में..
पूरी बोतल खाली होने के बाद एक पल में ऐसा लगा..
जैसे कितनी ज़िन्दगी जी ली है मैंने,
और...
आगे अभी और कितनी ज़िन्दगी है।।
#abhilekh