छोड़ दे...।।
रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे,
ओस के तपिश में जलना छोड़ दे।।
अब सितारे भी देखते है तुझे तन्हा
उम्मीद से दुआ में कहना छोड़ दे।।
सहर की धूप तेरा मुकाम बनेगी
अब इस चाँदनी में रहना छोड़ दे।।
जो दबा है दर्द उकेर दे लफ़्ज़ों में
यूँ रोज़ाना अश्क़ों में बहना छोड़ दे।।
अब यहाँ फ़रेब में वफ़ा लाज़मी है,
दूर होकर हुजूम से चलना छोड़ दे।।
©Abhilekh
Please note: 1st line Waseem Barlewi Ji ki nazm se li gayi hai...
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