Friday, 7 October 2016

सब तेरे नाम...

सब तेरे नाम...

यह शफ़क़ शाम हो रही है अब,
शब भी तेरे नाम हो रही है अब।

ठहर जाओ दो घडी मेरी खातिर,
इंतज़ार सर-ए-आम हो रही है अब।

अभी तो रौशन हुई है महफ़िल,
शाम रँग-ए-जाम हो रही है अब।

तेरे लबों से छलक कर बिखरा हूँ,
चाहतें मेरी पैग़ाम हो रही है अब।

एक रात बना कर भुला दो मुझे,
यहाँ सहर नीलाम हो रही है अब।

©Abhilekh

Note: 1st line is from Dushyant Kumar's

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