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Thursday, 1 May 2014

जब तक है जान... Published Poetry

This was written long back when the movie was released. Its not the same one what you people have heard/seen in the movie. Its written by me & its close to my heart. A voice-over has also been given to these verses. Hope you all would love & appreciate. Fortunately this poetry got published in 
Dainik Jagran/lucknow/vithika/page22/monday/5may2014





उन शोख सी अदाओं में यूँ तेरा बेतरतीबी से मचल जाना,
बारिश की बूंदों को हथेली पे उछाल के यूँ तेरा चहक जाना,
तुझे ताउम्र ऐसे ही निहारता रहूँगा मैं,
जब तक है जान, जब तक है जान ....!

तेरी हलकी सी मुस्कुराहट पे आँखों का झुक जाना,
न कुछ कहते हुए भी पल्लू का उँगलियों में लिपट जाना,
तेरे ऐसे ही अनकहे जज़्बातों से जिंदा रहूँगा मैं,
जब तक है जान, जब तक है जान ....! 

उस गुस्ताख़ हवा की शैतानी से तेरी ओढ़नी का सर से सरक जाना,
इन हवाओं में तेरी महक से समां में नशा सा छा जाना,
ऐसे ही तुझे अपनी इबादत में शामिल करता रहूँगा मैं,
जब तक है जान, जब तक है जान ....!

तेरे कुछ पल के इंतज़ार में यूँ बेपरवाह हर लम्हा गुज़ारना ,
सूखे पत्तों के ढेर पे भी तेरा मखमली से एहसास को पाना,
हर ज़र्रे में इश्क का फ़लसफ़ा सजाता रहूँगा मैं ,
जब तक है जान, जब तक है जान ....!

Thursday, 6 February 2014

ज़िन्दगी .... एक सफरनामा

Life keeps moving and so we people. Hence, thought to write a journey through which everybody goes in life. Some time you really think that till-date how much or what you have achieved and how much life has given you. Though when we come to this earth, our hands are empty but the fingers form a fist signifying to hold..to survive...& when we are dying, again our hands are empty but this time we have an open palm..signifying you have lived and now its time to leave everything. All these I have tried to say in poetic form...hope you all could relate..& do give your opinions..


ज़िन्दगी .... एक सफरनामा :

थोडा पढ़ा-लिखा और काफी कुछ सीखा ,
ज़िन्दगी को जी , ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा ..
एक सफ़र जो शुरू किया था ,
घर से दूर हो कर एक मंज़िल को तय किया था ..!
छोड़ के बचपन की गलियाँ ,
वो माँ के हाथों से सजी फूलों की क्यारियाँ ,
चला था एक मुकाम के लिए ..!
छोड़ के लड़कपन का साथ ,
वो पिता के नियमों को तोड़ने की शैतानियाँ ,
चला था उस मंज़िल के लिए ..!

कदम जो रखा नए से शहर की भींड में ,
भूल सा गया था खुद को उस चकाचौंध की नींद में ..
अनजान से शहर में तो कई लोग साथ थे ,
लेकिन सब मग्न थे आगे पहुँचने की होड़ में ..!
सफ़र कटता रहा और ज़िन्दगी बसर होती रही ,
रोज़ की दौड़ धुप में मंज़िल के तरफ कदम बढ़ती रही ..
कभी हार तो कभी जीत से मुलाक़ात होती रही ,
हर मोड़ पे आगाज़ और अंजाम की परछाई साथ चलती रही ..!

एक पल ठहर के सोचा देखूँ क्या हासिल किया अब तक ,
क्या खोया क्या पाया इस ज़िन्दगी में अब तक ..!
आँखें बंद की और मुट्ठियों को खोल दिया ,
सुना आकाश दिखा और हथेली खाली थी अब तक ...!
पूछा खुदा से ये कैसा सफ़र है ,
सब कुछ मिला फिर भी कुछ हासिल क्यूँ नहीं है ..
खुदा ने बस इतना कहा ये ही तो वो ज़िन्दगी है , 
जहाँ तेरी ही ज़िन्दगी तेरी हो कर भी तेरी नहीं है ...!! 

Lot of things came into mind while writing this, not everything was possible to write but still I tried to include every possible thing. Since Life never stops so we have to keep moving with a clear determination & commitment..You never know how far you can reach..may be more than sky..or stars..Keep Rocking..Always!!

Be Blessed & Be Happy!


Pic Courtesy : Self-Clicked

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I share content and solutions for mental wellness at workplace! After spending a couple of decade in Retail Industry and Content writing, I am still writing! A Freelance Professional Copywriter, who is also an Author. If you are reading this, do leave your comments. Connect for paid projects. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Yahan wo har baat hai jisey aap sunne ke bajaye padhna pasand karte hain. Aapka saath milega toh har shabd ko ek manzil mil jayegi!