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Friday, 12 June 2015

4 // गूँज an anthology

4

4 पल की ज़िन्दगी का सफ़र,
4 पैरों की चारपाई से शुरू होती है...
और, 4 काँधों पर ख़त्म होती है।

4 कोनों से बनी यह दुनिया,
4 दीवारों में सिमटी होती है...
और, 4 इंसानों के बीच बँटी होती है।

4 पल की ज़िन्दगी में,
4 ख़याल बेचैन करते है..
क्यूँकी, 4 रिश्तों में ज़िन्दगी उलझी होती है।

4 धर्म के आडम्बर में
4 दुनिया उलझी पड़ी है...
क्यूँकी, 4 इंसानों  में एक लहू की कमी होती है।

अगर यह गिनती बढ़ भी जाए तो क्या होगा..
और अगर कम भी हो जाये तो क्या बदलेगा..
.... सिर्फ एक नया कोलाहल ही होगा।।

#Abhilekh

Thursday, 11 June 2015

Smartphone // गूँज an anthology

Smartphone

Smartphone सी आदतें इंसान की हो गयी,
एक ऊँगली की कुरेद से कितनी परतें खुल गयी।

Apps की गलियों में गुम है कितने ख़याल,
बेवजह रिश्तों की अहमियत परतों में गुम हो गयी।

वक़्त सा बेपरवाह है animated wallpaper,
फिर भी निरंतरता में उसकी दुनिया है सिमट गयी।

हाथों में पूरा जहाँ लिए घूमता हूँ अकेला,
Chat apps की व्यस्तता मेरी ज़िन्दगी हो गयी।

अब हर मौके पर रिश्ते अपनी नीयत बदलते है,
क्यूँकी Updated version की सबको लत लग गयी।

जहाँ का शोर अब मुझे क़तई नही काटता,
क्यूँकी mp3/avi से दुनिया मेरी रंगीन हो गयी।

हर smartphone का अपना ही दौर है,
क्यूँकी इंसानों की औक़ात अब हाथों में आ गयी।

#abhilekh

Tuesday, 9 June 2015

ख़ामोशी // गूँज an anthology

ख़ामोशी।

कुछ बुतों में रूह को डालकर,
ख़ुदा ने जहाँ में इंसान को बना दिया।
लेकिन बदलते वक़्त में...
इंसान ने लिबास को पहचान बना लिया।
शायद इसलिए... रूह तो वही रह गयी,
लेकिन इंसानियत की रँगत बदल गयी।

अब बिन कपड़ों के वह बेशर्म है,
और कपड़ों में ढकी पूरी शर्म है।
अब फ़रेब भी करें तो कपड़े बदल लें...
और खून भी करें तो फ़ौरन उसे धो लें।
आज ख़ुदा... ख़ुद से शर्मसार है,
क्यूँकी उसकी ही बनायी दुनिया तार-तार है।

ख़ुदा की दुहाई अब बाज़ार में खुला धंधा है,
क्यूँकी इंसान बिन समझे अब धर्म में अँधा है।
कब्रिस्तान के सन्नाटों में भी...
इंसानों का ही शोरगुल सुनता हूँ।
एक लम्बी ख़ामोशी के लिए...अब,
ख़ुदा से एक जलज़ले की दुआ करता हूँ।

#abhilekh

Friday, 29 May 2015

कोशिश की ज़िन्दगी // गूँज an anthology

कोशिश की ज़िन्दगी।

एहसासों की करवट के साथ,
जैसे-जैसे ख़्वाबों की रात बीत रही थी,
उसी रफ़्तार से जज़्बातों की सहर...
अपने पँख फैला रही थी।

और अगले पल किसी ने दस्तक दी,
बोझिल आँखों से बेपरवाह चादर को हटाया,
ज्यों ही अरमानों का दरवाज़ा खोला,
तो सामने उम्मीद मुस्कुरा रही थी।

इससे पहले कि मैं कुछ बोलता,
उसने कहा निकलो इस चारदीवारी से बाहर,
देखो वक़्त कितना गुज़र गया,
इसलिए आज तुम्हे मेरे साथ चलना है।

मैंने कहा एक शाम वक़्त से इश्क फरमा लूँ,
तो बेशक तुम्हारे साथ चलता हूँ।

उम्मीद ने मुस्कुराते हुए कहा,
वक़्त से न खेलो वह तो जालसाज़ है,
तुम उसके तस्सवुर में उम्र गुज़ार दोगे,
और वह तुम्हे बिन बताये सफ़र पूरा कर लेगा।

तुम चलो मेरे साथ,
आज तुम्हे मुक़ाम से भी मिलवा दूँगा,
वहाँ तुम्हारी दोस्ती भी हो जाएगी,
फिर वक़्त भी वहीँ तुम्हे मिल जायेगा।

मैंने भी दिल से कहा,
आओ एक बाज़ी तो आज़मा ही लेते है।

#abhilekh

Sunday, 24 May 2015

मौसम का तकाज़ा // गूँज an anthology

मौसम का तकाज़ा...

वक़्त की चिलचिलाती गर्मी से,
जब कुछ एहसास मुरझाए..
मैंने सोचा क्यूँ न आज,
ख्यालों के फ्रिज को शुरू किया जाए।

क्या पता, इसी बहाने..
कुछ ठंडी उम्मीदों से दिल बहल जाए।

जैसे ही दरवाज़ा खोल..
जज़्बातों की रौशनी चहक उठी।

देखा, उम्मीदों की टोकरी भरी पड़ी थी..
मैंने सोचा कुछ हल्का ही सही..
अभी सिर्फ़ एक टुकड़े को उठाया था..
की बाकियों ने कयास वाली शक्ल बना ली।

मुझे लगा शायद यह ज़्यादती हो जाएगी..
इसलिए वापस रख दिया।

बस यादों से भरी एक बोतल ली..
दरवाज़ा बंद किया और वापस कुर्सी पर आ गया।

गटागट उतार ली थी पूरी बोतल ज़हन में..
पूरी बोतल खाली होने के बाद एक पल में ऐसा लगा..
जैसे कितनी ज़िन्दगी जी ली है मैंने,
और...
आगे अभी और कितनी ज़िन्दगी है।।

#abhilekh

Thursday, 14 May 2015

नयी जड़ें // गूँज an anthology

नयी जड़ें...

खोखले उसूलों से पनपी है,
कुछ आदर्श की नयी पत्तियाँ..
सूखे शाखों सी शख्सियत को,
फ़िर भी ख़ुद पर गुमान है।

वक़्त की बारिश में भीगने के बावजूद,
संकृड़ता की हवा में झूमते है..
कुछ ऐसे ही झुरमुट है इनके आस-पास,
इनको इसी बाग़ पर गुमान है।

ज़मीं के नीचे तो हकीक़त की ही जड़ें थी,
लेकिन उम्र और बदलते वक़्त के साथ,
दकियानूसी सोच ने अपने को फैला लिया है।

अब इसे उखाड़ें तो जड़ों का अफ़सोस होगा,
इसलिए पहले जड़ों की नुमाइश लगाते है,
तब नए सृजन का बखूबी संचार होगा।।

#abhilekh

Wednesday, 6 May 2015

दुआ // गूँज an anthology

दुआ...

बहुत कम सी लगती है ज़िन्दगी..
जब गुज़रे पलों के बारे में सोचता हूँ।

काश, यह दिन जितने महीने भी होते..
अक्सर तारीखों को देख सोचता हूँ।

हर रोज़ ज़िन्दगी अपने तेवर बदलती है..
और ज़िन्दगी को मैं अपने अंदाज़ से जीता हूँ।

12 घंटों का वक़्त जब दुबारा होकर 24 है..
फ़िर मैं ज़िन्दगी को दुबारा क्यूँ नही जी सकता हूँ।

सुबह का एक दिन और अगले दिन की रात हो..
एक ऐसी दुनिया के बारे में सोचा करता हूँ।

सूरज की रौशनी से रात और चाँद का दिन हो..
एक ऐसे मौसम की कल्पना करता रहता हूँ।

बुतों के बीच की ज़िन्दगी को जी लिया मैंने..
अब एक ज़िन्दगी ख़ुदा के रूबरू होने की दुआ करता हूँ।।

#abhilekh

Sunday, 26 April 2015

दुआ का बाज़ार // गूँज an anthology

दुआ का बाज़ार...

बज़्म-ए-दुआ का मंज़र कल देखा मैंने,
फटी चादर में लिपटी अमीरी देखा मैंने।

मैंने सोचा चंद सिक्कें उछाल दूँ लेकिन,
ग़ुरबत-ए-हुजूम का बाज़ार देखा मैंने।

सोचा सजदे से पहले इनकी दुआ बटोरूँ,
लेकिन दुआओं पर दाम लगे देखा मैंने।

रेवड़ियों की एक थैली मैंने सामने रख दी,
उन टुकड़ों को बेईज्ज़त होते देखा मैंने।

दुआ पढ़कर जब निकला ख़ुदा के घर से,
मायूसी के लिबास में लालच देखा मैंने।

इस बार बेशर्म सिक्कों को उछाल दिया,
फ़िर सतरंगी दुआओं का नज़ारा देखा मैंने।।

#abhilekh


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Tuesday, 21 April 2015

यह ज़िन्दगी...। // गूँज an anthology

यह ज़िन्दगी...

कोशिश की सीढ़ियों पर,
जब ख़्वाहिशें चढ़ती है..
उम्मीदों के मुंडेर तक पहुचने के लिए,
एक जोश रहता है..
एक चाह होती है।
जैसे, शायद असमानों को छूने का,
या बुलंदियों पर होने का..
या दूरियों को जीने का..
या फिर फ़लक से ज़मीं का नज़ारा देखने का।
लेकिन इन्हें चिलचिलाती संघर्षों से परहेज़ होता है..
क्यूँकी गुनगुनी मेहनत ज़्यादा मज़ा देती है।
....और जब उतर कर आओ,
हकीक़त की ज़मीं पर,
फ़िर ख़्वाहिशों का मजमा समझ में आता है।
कैसी है न यह ज़िन्दगी...
अनिश्चित, बेपरवाह खुद..
और इलज़ाम आदतों के सर पर थोप जाती है।

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Wednesday, 15 April 2015

पैसों की घुटन // गूँज an anthology

पैसों की घुटन।

धम्म से गिरा एक सिक्का दानपेटी में,
और अन्य सिक्कों को उसकी मौजूदगी खल गयी।
नया मुर्गा, नयी मन्नत, नया क़ैदी,
कुछ ऐसी खुसर-फुसर आपस में शुरू हो गयी।
बाहर मंदिर का घंटा फिर ज़ोर से बजा,
सिक्कों की खीज में पुरानी सी नोट भी पिस गयी।
कहने लगे क्या इंसान है यार,
पहले अहिंसा का पाठ पढ़ाते है..
और अहिंसा के ठेकेदार को हम पर छापकर,
हमें हिंसा की वजह बताते है।
अब तो ठेंगा भी बना दिया गया है,
फ़िर भी बाझ नहीं आते है।
1 रुपए में 1लाख ख़्वाहिशें,
रोज़ गिनवा के चले जाते है।
1 घंटी की झंकार में भगवान को भी,
एहसान जता कर चले जाते है।
आते है मंदिर लेकिन चप्पल की चिंता..
और मोबाइल की घंटियों से मंत्र पढ़ जाते है।
आज जो हम लोग यहाँ बहक जाएँ,
तो पुजारी की शामत भी खनक जाएगी।
लेकिन कमबख्त़ फ़िर यहाँ,
लूट-खसूट और धर्म की महाभारत छिड़ जाएगी।
चलो छोड़ो, अब हमसे ही इनकी औक़ात है..
वरना आज क्या इंसान और क्या इनकी जात है।।

#Abhilekh

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Monday, 22 December 2014

ख्याल-ए-इश्क / काव्यशाला an anthology

ख्याल-ए-इश्क़।

मुख़्तसर सी मुलाक़ातों का सिलसिला देखो,
कोई मेरे मुक़द्दर में अचानक से शामिल हो गया।

हम लम्हें गुज़ारते रहें उनके तस्सवुर में,
गुज़िश्ता पलों के साथ कोई मेरा हमदम हो गया।

कल तक कोई ख़्वाबों-ख़यालों में भी नही था,
आज कैसे एक पल में वह मेरा हम-साया हो गया।

अब तो डूबे हैं उनकी आशिक़ी में कुछ ऐसे,
इबादत-ए-इश्क़ में मेरा सनम ही मेरा ख़ुदा हो गया।

Friday, 19 December 2014

ज़ख्म / काव्यशाला an anthology

ज़ख्म।

लिबास पहन कर अपने ज़ख्मों को छुपा लिया,
फिर उन्ही लिबास ने मेरे ज़ख्मों को कुरेद दिया।

अब तो आदत सी बन गयी है ज़ख्मों को जीने की,
इसलिए दवा और दुआओं से खुद ही परहेज़ कर लिया।

अब रिस्ते खून और दर्द सिर्फ़ अपने से लगते है,
इसलिए पुराने ज़ख्मों को भी नासूर ही बना रहने दिया।

बेशकीमती से है मेरे ग़म और यह सारे ज़ख्म,
कुछ उधार मिले तो कुछ खरीद के रख लिया।

दुआएँ भी आती रही मरहम लगाने को हर वक़्त,
मैंने ही हर दुआ के बाद ख़ुद को काँटों में उलझा लिया।

Monday, 5 May 2014

हमें तो लुट लिया मिलके हुस्न वालों ने

This has been written modifying the Original Qawaali Lyric "Humein To Loot Liya Milke Husn Walon Ne".
Since I don't see much Qawaali Lyric in movies, so I have tried to pen it as per my own thoughts and understanding. Hope you would find it interesting & entertaining.



हमें तो लुट लिया मिलके हुस्न वालों ने ..  काले काले बालों ने गोरे गोरे गालों ने .... 


कुछ अपने अंदाज़ में, कुछ अपने अलफ़ाज़ में ...
पेश-ए-खिदमत है :


हमें तो लुट लिया मिलके हुस्न वालों ने
काले काले बालों ने गोरे गोरे गालों ने

निगाहें मिला के जब वो यूँ ही शरमाये
जवां दिलों में जैसे हलचल सी मच जाये
होठों पे उनके हलकी से हंसी जब आये
न जाने कितनो के जवां दिल बहक जाये
चेहरे पे गिरी लटों में से जब झांके
उस अंदाज़ पे कोई कैसे न फ़िदा हो जाये
फिर उसी लटों को चेहरे से हटाये खुद ही
बिना कहे इठला के चल देंगे बस यूँ ही
खुदा बचाए ऐसे आलम से ...
के कई दिल लुट गए ऐसे नजारों में ...

हमें तो लुट लिया मिलके हुस्न वालों ने
काले काले बालों ने गोरे गोरे गालों ने।।

खनकाते हैं अपनी चूडियो को बस यूँही
ताकि नज़र मिलाने को तरसे बस हम ही
फिर अपनी गेसुओं को को खुद ही सुलझाये
ये देख के कोई आशिक कैसे काबू पाए
जो पास जाके कह दे हम हाल दिल का
वो ताउम्र ले लेंगे जवाब सोचने का
पूछती रहेंगी अपनी तारीफ़ के किस्से
जो न बोलो तो रूठ जाएँ फिर तुमसे
खुदा बचाए ऐसे आलम से ...
के कई दिल लुट गए ऐसे नजारों में ...

हमें तो लुट लिया मिलके हुस्न वालों ने
काले काले बालों ने गोरे गोरे गालों ने।।

हुस्न की पैरवी वो ही खुद करते
और इश्क को अपनी क़दमों में ही रखते
जो कह दो के जान हाज़िर है
कह देंगे आज आसमान पाने की ख्वाहिश है
आशिकों का कारवां उन्हें बड़ा पसंद होता
हर तारीफ़ पे उनका नया अंदाज़ होता
न इकरार न तो इज़हार इनका है मिलता
बस आशिकों को बेवजह इनकार है मिलता
खुदा बचाए ऐसे आलम से ...
के कई दिल लुट गए ऐसे नजारों में ...

हमें तो लुट लिया मिलके हुस्न वालों ने
काले काले बालों ने गोरे गोरे गालों ने।।

Thursday, 1 May 2014

जब तक है जान... Published Poetry

This was written long back when the movie was released. Its not the same one what you people have heard/seen in the movie. Its written by me & its close to my heart. A voice-over has also been given to these verses. Hope you all would love & appreciate. Fortunately this poetry got published in 
Dainik Jagran/lucknow/vithika/page22/monday/5may2014





उन शोख सी अदाओं में यूँ तेरा बेतरतीबी से मचल जाना,
बारिश की बूंदों को हथेली पे उछाल के यूँ तेरा चहक जाना,
तुझे ताउम्र ऐसे ही निहारता रहूँगा मैं,
जब तक है जान, जब तक है जान ....!

तेरी हलकी सी मुस्कुराहट पे आँखों का झुक जाना,
न कुछ कहते हुए भी पल्लू का उँगलियों में लिपट जाना,
तेरे ऐसे ही अनकहे जज़्बातों से जिंदा रहूँगा मैं,
जब तक है जान, जब तक है जान ....! 

उस गुस्ताख़ हवा की शैतानी से तेरी ओढ़नी का सर से सरक जाना,
इन हवाओं में तेरी महक से समां में नशा सा छा जाना,
ऐसे ही तुझे अपनी इबादत में शामिल करता रहूँगा मैं,
जब तक है जान, जब तक है जान ....!

तेरे कुछ पल के इंतज़ार में यूँ बेपरवाह हर लम्हा गुज़ारना ,
सूखे पत्तों के ढेर पे भी तेरा मखमली से एहसास को पाना,
हर ज़र्रे में इश्क का फ़लसफ़ा सजाता रहूँगा मैं ,
जब तक है जान, जब तक है जान ....!

Thursday, 24 April 2014

चुनाव - A Published Poetry

चुनाव...

आज़ाद भारत में एक व्यवस्था बनायी गयी है,
जनता अपना प्रतिनिधि खुद चुने ऐसी प्रणाली दी गयी है।

जनता का वो विश्वसनीय देश का कर्णधार है,
जिसके इशारों पर राजनीति का होता व्यापार है।

५ साल की सत्ता में ना जाने कितने दौर आते है,
जनता की हर उम्मीद उसी तरह धरे रह जाते है।

इस राजनीति के खेल में नेता आते जाते रहते है,
बस जनता हर साल मूक दर्शक का किरदार निभाते है

चुनाव के वक़्त का चुनाव भी नेता खुद तय करते है,
और जनता एकजुट मन मसोस कर सब सहते रहते है।

वादों का पुलिंदा अक्सर देखने को मिलता है,
जनता फिर भी हर साल तवज्जो दिए जाती है।

मिलीभगत से चुनाव के बहाने जेबें भरी जाती है,
और जनता हर बार चुनाव के बहाने ठगी जाती है।

बेबुनियादी मुद्दों का अक्सर माहौल बनाया जाता है,
जनता के मुश्किलों को मखौल बता दरकिनार किया जाता है।

पूंजीवादियों की सिफारिश में महंगाई घर आती है,
और आम जनता की खुशियाँ आँसुओं में बह जाती है।

चुनाव में चुनने का सवाल बस सवाल बनी रह जाती है
और जनता की किस्मत किसी सिरफिरे के हाथ लग जाती है

आज प्रजातंत्र में सत्तारूढ़ अपना शासन चलाते है
और प्रजा अपने को शोषित होते देख जिए जाते है।

यह चुनाव का अभिप्राय कुछ धुंधला सा है,
सच में यह पारदर्शिता की खाल में स्वार्थ का साधन सा है।

Sunday, 16 March 2014

मेरे होली के रँग।

रँगों के महफ़िल में हम क्या तेरा ज़िक्र करें,
जब हर ज़र्रे में मुझे बस तेरा ही अक़्स दिखा।

कभी सुनहली गेसुओं से तूने समां में रँग बिखेरा,
तो कभी अपने कत्थई आँखों का जाम उड़ेला।

तेरे गुलाबी गालों पर दमकती धुप की क्या बात करें,
जब लाल रँग का वजूद सिर्फ़ तेरे लबों से निखरा।

क्यूँ न होली के बहाने इस बार फिर नया रंग घोलें,
मुझे तो हर रँग का फ़लसफ़ा बस तुझसे ही मिला।

Saturday, 15 March 2014

रिश्ते...

रिश्ते।

ख़ुदा की बनायी दुनिया में,
लोगों का लगा हुआ हुजूम है,
जहाँ जाने-अनजाने में,
ना जाने कितने रिश्ते बन जाते है।

कभी अनजानों की शक्ल लिए,
कोई परिचित से मिल जाते है,
तो कभी अपने ही अपना रंग बदले,
बेगानों की क़तार मे नज़र आते है।

संसार में इंसान के पैदा होते ही,
रिश्तों के मज़हब घर कर जाते है,
और फिर इन्ही रिश्तों की गिरफ्त में,
ख़ुद की साँसों के कर्ज़दार हो जाते है।

कभी भावनाओं की बेपरवाही में,
रिश्तों के वास्ते गिनाये जाते है,
तो कभी इन्ही रिश्तों की आड़ में,
स्वार्थ सिद्धि के उपाय बनाये जाते है।

ताउम्र मतलबी रिश्तों के पुलिंदें में,
इन्सान लगातार गोते लगाता रहता है,
दूसरों को खुश करने क चक्कर में,
खुद के वजूद की हत्या करता जाता है।

जज़्बातों के कठघरे में,
रिश्तों की पैरवी चलती रहती है,
इच्छाओं की इतराते क़दमों में,
उसूलों की बेड़ियाँ डाली जाती है।

अपने जन्म से लेकर मरने में,
इंसान एक सफ़र तय कर जाता है,
लेकिन रिश्तों की होड़ में,
खुद को सवालों से घिरा पाता है।

इस ज़िन्दगी के बड़े सफ़र में,
सभी रिश्ते अपनी अह्मिअत जताते है,
कभी समूह तो कभी तन्हाई में,
हर पहचान का कारोबार किये जाते है।

Sunday, 2 March 2014

तेरी काशिश...

तेरी गली का रास्ता कुछ ऐसा है की बेवजह कदम चले जाते है,
हम बेपरवाही में बढे जाते है और तेरे दरवाज़े पर ठहर जाते है।

तुमसे मिलना किस्मत था फ़िर हर मुलाक़ात ज़िन्दगी बन गयी,
अब तुम खुद देखो कैसे तुम्हारी तलब मेरी बंदिगी बन गयी।

हर मौसम का मज़ा दोगुना हो जाता है जब तुम मेरे होठों पर खिलती हो,
तमाम खुशियाँ अंगड़ाई लेती है जब तुम मेरे बाँहों में मचलती हो।

Thursday, 2 January 2014

भ्रष्टाचार / Corruption

Corruption ki maar apna desh bahut dino se bhog raha hai aur iski jadein hamin ne daali hai...aur ham hi iska niwaaran kar sakte hai..ek aisi process hai jismein chain reaction hai aur har aadmi aaj ke date mein pareshaan hai. Isi pe ek roshni..


भ्रष्ट होती दुनिया भ्रष्ट होते लोग
खुदा की बनाई हुई दुनिया में
मतलबपरस्त हो गए है लोग ...
हर चीज़ को पाना है
हर मुकाम हासिल करना है
उस मंजिल पे पहुचने के लिए
अपना अस्तित्व इतना क्यों गिराना है ...
तुम दो मांगो वो चार मांगे
कोई छुपके मांगे तो कोई बेशर्मी से मांगे
माँगना भी तो भीख है
क्यूँ न इस भिखारी के हाथ काटे ...
किसी को अपने वर्चस्व की धौंस है
किसी को अपने ओहदे की धौंस है
अंधी भूख में ऐसे पागल हुआ है इंसान
इंसानियत तो गुम हुई न जाने कितने दूर कोस से ...
कानून भी बना हुआ था
आक्रोश भी खूब आया था
फिर क्यूँ नहीं कोई बदलाव आया
क्या स्वार्थ इंसान को इतना खा गया था ...
बेकार की बहस छोडो
औरों के गिरेबां में झांकना छोडो
और अपने में झांको
फिर अपने ईमान को टटोलो ...
गर तुमने कभी कोई लालच को जन्म नहीं दिया
अपने क्षणभंगुर चाहत की पूर्ति के लिए किसी को नीचा नही किया
तो आओ, ये लो ,
और उस भ्रष्टता पे सबसे पहला पत्थर तुम मारो ..!

मेरे अपने ....!

Yun toh pehle main sirf aashiqui pe likhta rahta tha, lekin ek bar ek aisi pic se nazar mili ke khud ko likhne se rok nhi paya tha & tab mere likhne ke maayne badal gaye..! Is Tasvir ne mujhe kaafi kuch sochne pr majbur kia & tab jo bhi dil-o-dimaag mein aaya usey ukera aur logon ke saamne rakha...aap bhi apni pratikriya zarur dijiye.




Pesh-e-Khidmat hai :

***** मेरे अपने ....!*****

तुम भी मेरे जैसे दिखते हो
मेरे ही जैसे लिबास में
मेरे ही समाज में
हर पल मेरे साथ रहते हो ...
किस्मत का दोष है
या फिर करनी का दोष है
जिसने दुनिया में मुझे ऐसे लाया
या फिर उस मौला का दोष है ...
ज़िन्दगी की दौड़ में तुम भी हो
हर साँस के कर्ज़दार तुम भी हो
फिर ऐसा क्यों है
तुम्हे हर ऐश-ओ-आराम से नवाज़ा गया
और मुझे ज़िल्लत में पाला गया ...
क्या गरीबी वो औकात है जिसकी कोई जात नही
या अमीरी वो आलम है जिसमे कभी रात नही
एक ही खुदा ने बनाई ये इंसानी जिस्म
फिर इंसानियत में कोई समानता क्यों नही ...
हम रोज़ आमने सामने
गुज़रते हुए एक दुसरे को देखते है
तुम हमें धिक्कार के नज़र फेरते हो
हम तुम्हे सपनो की तरह देखते है ...
ज़िन्दगी दी है उस खुदा ने
बस उसी को याद कर जिए जाते है ..
हर तपन को जाड़े की धुप समझ
बिना रुके बढे जाते है ...
क्यूंकि हम जो रुक गए
तो तुम्हारे ऐश-ओ-आराम खलल पड़  जाते हैं !

About Me

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India
I share content and solutions for mental wellness at workplace! After spending a couple of decade in Retail Industry and Content writing, I am still writing! A Freelance Professional Copywriter, who is also an Author. If you are reading this, do leave your comments. Connect for paid projects. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Yahan wo har baat hai jisey aap sunne ke bajaye padhna pasand karte hain. Aapka saath milega toh har shabd ko ek manzil mil jayegi!