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Thursday, 14 August 2014

A Published Anthology निर्झरिका 5/5

सियासत के रँग।

सियासत की नयी राह फिर से बनने लगी है,
त्योहारों से पहले ही दीवारों की पपड़ी उतरने लगी है।

बोल-वचन ही है असली स्वराज हमारा,
करनी के वक़्त ख़ुद की पतलून खिसकने लगी है।

अब दूध-भात भी नही मानते इस खेल में,
बहरुपियों की जमात वही पुराने करतब दिखाने लगी है।

बदलते रहते है यह मौसम वक़्त-बेवक्त,
नए साज़ पर फिर वही पुरानी धुन बजने लगी है।

विकल्पों के दौर में किसे बेहतर बताएँ,
जब हर छुट के बाद हर कीमत एक सी लगने लगी है।

Thursday, 24 April 2014

चुनाव - A Published Poetry

चुनाव...

आज़ाद भारत में एक व्यवस्था बनायी गयी है,
जनता अपना प्रतिनिधि खुद चुने ऐसी प्रणाली दी गयी है।

जनता का वो विश्वसनीय देश का कर्णधार है,
जिसके इशारों पर राजनीति का होता व्यापार है।

५ साल की सत्ता में ना जाने कितने दौर आते है,
जनता की हर उम्मीद उसी तरह धरे रह जाते है।

इस राजनीति के खेल में नेता आते जाते रहते है,
बस जनता हर साल मूक दर्शक का किरदार निभाते है

चुनाव के वक़्त का चुनाव भी नेता खुद तय करते है,
और जनता एकजुट मन मसोस कर सब सहते रहते है।

वादों का पुलिंदा अक्सर देखने को मिलता है,
जनता फिर भी हर साल तवज्जो दिए जाती है।

मिलीभगत से चुनाव के बहाने जेबें भरी जाती है,
और जनता हर बार चुनाव के बहाने ठगी जाती है।

बेबुनियादी मुद्दों का अक्सर माहौल बनाया जाता है,
जनता के मुश्किलों को मखौल बता दरकिनार किया जाता है।

पूंजीवादियों की सिफारिश में महंगाई घर आती है,
और आम जनता की खुशियाँ आँसुओं में बह जाती है।

चुनाव में चुनने का सवाल बस सवाल बनी रह जाती है
और जनता की किस्मत किसी सिरफिरे के हाथ लग जाती है

आज प्रजातंत्र में सत्तारूढ़ अपना शासन चलाते है
और प्रजा अपने को शोषित होते देख जिए जाते है।

यह चुनाव का अभिप्राय कुछ धुंधला सा है,
सच में यह पारदर्शिता की खाल में स्वार्थ का साधन सा है।

Thursday, 2 January 2014

तू कौन है ...?

Kuch din pehle ki likhi hui kavita jo 2013 Independence Day ke liye likhi thi..kahin kho gayi thi..aaj wapas mil jaane pe share kar rha hun..! Ye maine us samay ke time ke according likha tha jab Border per bahut tention hone ke baawjud apne PM ke taraf se koi nhi tough stand nhi lia gaya tha....!




तू कौन है ...?
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तू अपना ही है,
लेकिन तू भेदी है ..
फिर नेता कौन है ?

तु शहीद है,
लेकिन तू बलि है ..
फिर सिपाही कौन है ?

तू तिरंगा है,
लेकिन तू बाँटा हुआ है ..
फिर इकरंगा कौन है ?

तू इमानदार है,
लेकिन तू अँधा है ..
फिर क़ानून कौन है ?

तू पूज्य है,
लेकिन तू पत्थर है ..
फिर भगवान कौन है ?

तू स्वाधीन है,
लेकिन तू नौकर है ..
फिर आज़ाद कौन है ?

तू देश है,
लेकिन तू विभाजित है ..
फिर संयुक्त कौन है ?


Pic Courtesy : Google

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