Showing posts with label social issue. Show all posts
Showing posts with label social issue. Show all posts

Sunday, 29 June 2014

कन्या और उसके रूप...

कभी देवी हूँ इस नभ के नीचे, कभी सिर्फ स्त्री हूँ धरा पर।

बोझ हूँ मैं जिम्मेदारियों के नीचे, और एक खर्च हूँ हर परिवार पर।

कभी कमसिन हूँ कलम के नीचे, और हवस हूँ  बिस्तर पर।

बचपन गुम मेरी मज़दूरी के नीचे, क्यूँकी गरीबी है मेरे जिस्म पर।

शिक्षा बेपरवाह है ज़रूरत के नीचे, लेकिन रोज़गार का बोझ है मेरे सिर पर।

Thursday, 27 March 2014

धर्म और इंसानियत। - Published Poetry

धर्म और इंसानियत।

धर्म का जन्म पहले हुआ या इंसानियत पहले आयी,
कुछ इसी उलझन में आज की सामाजिक व्यवस्था है बिगड़ गयी।
धर्म के नाम पर इन्सान आडम्बर से बाझ नही आते,
और अपनी ही इंसानियत को बेशर्मी से सरेआम है बेच खाते।
धर्म की आड़ में अपने समाज में कितने कुकर्म हो रहे है,
और इंसान अपनी ही बिरादरी में दिनोंदिन धूमिल हो रहे है।


इन्सान खुद तो बँट गया ना जाने कितने वर्गों में,
और भगवान को भी बाँट लिया अपने अनुसार धर्मों में।
बस उपदेश भर है की इश्वर एक है,
दरअसल में विडम्बना यह है कि इंसान अनेक है।
पल भर में पत्थर और शुन्य को सब कुछ मान लेते है,
लेकिन इंसानियत के वक़्त जाति और धर्म पहले गिने जाते है।
ख़ुदा ने दुनिया में इंसान बनाया कुछ सोचकर,
और इंसानों ने दुनिया बदल दी धर्मों के नाम पर।


आज भाईचारा किताबों में सिमट गयी है,
सिर्फ ग्रंथों की लड़ाई सर्वोपरि हो गयी है।
खून का रंग भले सबका सुर्ख होता है,
लेकिन उसका अस्तित्व घायल जिस्म से होता है।
जहाँ धर्म ने आपसी सौहार्द के बजाय नफरत को जन्म दिया है,
वहीँ इंसान ने धर्म को विभित्स बना उसे कलंकित कर दिया है।


This is a published poetry, so you can refer below link also:

http://prabhatpunj.inprabhat.com/sahityasamvad/%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%A4-%E0%A5%A4.html

Thursday, 2 January 2014

भ्रष्टाचार / Corruption

Corruption ki maar apna desh bahut dino se bhog raha hai aur iski jadein hamin ne daali hai...aur ham hi iska niwaaran kar sakte hai..ek aisi process hai jismein chain reaction hai aur har aadmi aaj ke date mein pareshaan hai. Isi pe ek roshni..


भ्रष्ट होती दुनिया भ्रष्ट होते लोग
खुदा की बनाई हुई दुनिया में
मतलबपरस्त हो गए है लोग ...
हर चीज़ को पाना है
हर मुकाम हासिल करना है
उस मंजिल पे पहुचने के लिए
अपना अस्तित्व इतना क्यों गिराना है ...
तुम दो मांगो वो चार मांगे
कोई छुपके मांगे तो कोई बेशर्मी से मांगे
माँगना भी तो भीख है
क्यूँ न इस भिखारी के हाथ काटे ...
किसी को अपने वर्चस्व की धौंस है
किसी को अपने ओहदे की धौंस है
अंधी भूख में ऐसे पागल हुआ है इंसान
इंसानियत तो गुम हुई न जाने कितने दूर कोस से ...
कानून भी बना हुआ था
आक्रोश भी खूब आया था
फिर क्यूँ नहीं कोई बदलाव आया
क्या स्वार्थ इंसान को इतना खा गया था ...
बेकार की बहस छोडो
औरों के गिरेबां में झांकना छोडो
और अपने में झांको
फिर अपने ईमान को टटोलो ...
गर तुमने कभी कोई लालच को जन्म नहीं दिया
अपने क्षणभंगुर चाहत की पूर्ति के लिए किसी को नीचा नही किया
तो आओ, ये लो ,
और उस भ्रष्टता पे सबसे पहला पत्थर तुम मारो ..!

मेरे अपने ....!

Yun toh pehle main sirf aashiqui pe likhta rahta tha, lekin ek bar ek aisi pic se nazar mili ke khud ko likhne se rok nhi paya tha & tab mere likhne ke maayne badal gaye..! Is Tasvir ne mujhe kaafi kuch sochne pr majbur kia & tab jo bhi dil-o-dimaag mein aaya usey ukera aur logon ke saamne rakha...aap bhi apni pratikriya zarur dijiye.




Pesh-e-Khidmat hai :

***** मेरे अपने ....!*****

तुम भी मेरे जैसे दिखते हो
मेरे ही जैसे लिबास में
मेरे ही समाज में
हर पल मेरे साथ रहते हो ...
किस्मत का दोष है
या फिर करनी का दोष है
जिसने दुनिया में मुझे ऐसे लाया
या फिर उस मौला का दोष है ...
ज़िन्दगी की दौड़ में तुम भी हो
हर साँस के कर्ज़दार तुम भी हो
फिर ऐसा क्यों है
तुम्हे हर ऐश-ओ-आराम से नवाज़ा गया
और मुझे ज़िल्लत में पाला गया ...
क्या गरीबी वो औकात है जिसकी कोई जात नही
या अमीरी वो आलम है जिसमे कभी रात नही
एक ही खुदा ने बनाई ये इंसानी जिस्म
फिर इंसानियत में कोई समानता क्यों नही ...
हम रोज़ आमने सामने
गुज़रते हुए एक दुसरे को देखते है
तुम हमें धिक्कार के नज़र फेरते हो
हम तुम्हे सपनो की तरह देखते है ...
ज़िन्दगी दी है उस खुदा ने
बस उसी को याद कर जिए जाते है ..
हर तपन को जाड़े की धुप समझ
बिना रुके बढे जाते है ...
क्यूंकि हम जो रुक गए
तो तुम्हारे ऐश-ओ-आराम खलल पड़  जाते हैं !

तू कौन है ...?

Kuch din pehle ki likhi hui kavita jo 2013 Independence Day ke liye likhi thi..kahin kho gayi thi..aaj wapas mil jaane pe share kar rha hun..! Ye maine us samay ke time ke according likha tha jab Border per bahut tention hone ke baawjud apne PM ke taraf se koi nhi tough stand nhi lia gaya tha....!




तू कौन है ...?
````````````````
तू अपना ही है,
लेकिन तू भेदी है ..
फिर नेता कौन है ?

तु शहीद है,
लेकिन तू बलि है ..
फिर सिपाही कौन है ?

तू तिरंगा है,
लेकिन तू बाँटा हुआ है ..
फिर इकरंगा कौन है ?

तू इमानदार है,
लेकिन तू अँधा है ..
फिर क़ानून कौन है ?

तू पूज्य है,
लेकिन तू पत्थर है ..
फिर भगवान कौन है ?

तू स्वाधीन है,
लेकिन तू नौकर है ..
फिर आज़ाद कौन है ?

तू देश है,
लेकिन तू विभाजित है ..
फिर संयुक्त कौन है ?


Pic Courtesy : Google

About Me

My photo
India
I share content and solutions for mental wellness at workplace! After spending a couple of decade in Retail Industry and Content writing, I am still writing! A Freelance Professional Copywriter, who is also an Author. If you are reading this, do leave your comments. Connect for paid projects. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Yahan wo har baat hai jisey aap sunne ke bajaye padhna pasand karte hain. Aapka saath milega toh har shabd ko ek manzil mil jayegi!