Sunday, 2 March 2014

तेरी काशिश...

तेरी गली का रास्ता कुछ ऐसा है की बेवजह कदम चले जाते है,
हम बेपरवाही में बढे जाते है और तेरे दरवाज़े पर ठहर जाते है।

तुमसे मिलना किस्मत था फ़िर हर मुलाक़ात ज़िन्दगी बन गयी,
अब तुम खुद देखो कैसे तुम्हारी तलब मेरी बंदिगी बन गयी।

हर मौसम का मज़ा दोगुना हो जाता है जब तुम मेरे होठों पर खिलती हो,
तमाम खुशियाँ अंगड़ाई लेती है जब तुम मेरे बाँहों में मचलती हो।

Wednesday, 26 February 2014

कलम और स्याही....

कलम और स्याही....

सोच की कलम और जज्बातों की स्याही से,
कभी पन्नों पर एहसासों का इन्द्रधनुष खिलता था।

कभी लिख कर तो कभी चित्रित कर,
हर रंग का किस्सा उन पन्नों पर उकेरता था।

अब वही स्याही कुछ ग़मज़दा सी हो गयी,
जिससे कभी मोहब्बत के अफ़साने लिखते थे।

अब उस कलम की भी हिम्मत टूट गयी,
जिससे कभी रूमानियत का समां बुनते थे।

आख़िरकार कलम ने पूछा स्याही से,
क्या हमारे रिश्ते का यही वजूद लिखा था।

स्याही ने आह भरकर जवाब में कहा,
पन्नों पर बिखरे रिश्तों का यही मंज़र होना था।

Saturday, 22 February 2014

Published Poetry: कानून की आँखों पे पट्टी कब तक ?

कानून की आँखों पे पट्टी कब तक ?
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मतलबपरस्त सी इस दुनिया में, 
पक्षपात से परे रहने के लिए,
गांधारी की तरह तुमने भी अपनी आँखों पे पट्टी बाँध लिया...!
और कौरवों की तरह तुम्हारे ही लोगों ने, 
न्याय की व्यवस्था को पेशा बना,
न्यायप्रणाली को सरेआम तुम्हारे ही समाज में बेच दिया...!
तुम्हारा ही कहना था कि सही न्याय के लिए, 
सबूतों को न्याय की तराजू में तौल कर,
किसी के लिए तभी सही ग़लत का फैसला किया जायेगा...!
अब तुम्हारे फैसले का क्या वजूद है, 
जब हर जिरह और सुनवाई से पहले ही,
खरीद-फरोख्त से हर गवाह और फैसला भी तय हो जायेगा....!
ये तुम कौन सा न्याय करना चाहती हो, 
हर वक़्त आँखों पे पट्टी बाँध कर,
यहाँ तो रिश्वत पे जुर्म भी आसानी से होती है रिहा...!
बहुत हुआ अब उतार भी फेंको ये पट्टी,
अब समय हुआ है यथार्थ में आ जाओ,
संशोधन का नाटक ख़त्म करो और अब अपनी रफ़्तार बढाओ ...!
गर अब न सुधारी अपनी न्याय व्यवस्था,
तो फिर एक क्रान्ति का दौर होगा,
जहां हर इंसान न्यायालय को भूल खुद ही सड़क पर फैसला कर रहा होगा...!

Sunday, 16 February 2014

Published Poetry: प्रदूषित इंसानियत

Here I have one more published poetry stating about on social issues. This was written keeping on mind about global warming and at the same time I have tried to speak on human behavior. With an overall gradual development across the world, somehow we are losing the charm of human nature. We are in so rush that we no longer care for our own people. Nowadays relationships don't last long, people suffers from various kind diseases which are not easily curable. For the sake of surviving in this world, we are actually killing ourselves and heading towards a bleak and unknown world.
Please do read & give your comments...



Pic Courtesy : Clicked from Magazine


प्रदूषित इंसानियत 

प्रदूषित हो रहा पर्यावरण,
इंसानियत को कुदरत से कैसे यह रंजिश है। 
बेहताशा पेड़ों को काट कर,
अब बस्ती नयी ज़िन्दगी है। 
इस्पाती रसायनों की बाढ़ में,
पानी को तरसती ज़िन्दगी है। 
गतिशील उन्नति की राह में,
बीमारियों में लिपटी ज़िन्दगी है। 
रफ़्तार की पकड़ में,
सड़कों पर भागती ज़िन्दगी है। 
मतलबपरस्ती कि झुण्ड में,
उलझी रिश्तों कि ज़िन्दगी है। 
किसे दोष दें इस प्रदिशन के लिए ?
क्या करें इसे दूर करने के लिए ?
क्यूँ इंसान अपना अस्तित्व  मिटा रहा है ?
आज के लिए अपना कल क्यूँ बिगाड़ रहा है ?
आओ धरती पर भी एक नया स्वर्ग बनाएँ,
धूमिल होती इंसानियत को फ़ौरन बचाएँ।

So, I believe I have not done anything towards "Preaching" because am not good in that. But yes, as being human I do care about my surroundings. I am also trying to contribute in such a way so that we could see a better and healthy environment. If we all work towards any common cause, definitely a change would take place... Lets try a bit...

Be Happy n Be Blessed! :)

Wednesday, 12 February 2014

Published Poetry : ...यह अपनी आज़ादी।

This was written on the occasion of Independence Day & this Poetry is one of my published poetry. In this poetry, I have tried to say that since we are now Independent, we should be very alert to maintain it. We achieved our freedom after lot of struggle so we should see that Freedom should be treated as an opportunity to suppress weaker one or it should not be used for any inhuman practices..
Pls do read & give your comments...


...यह अपनी आज़ादी।
सब मुक्त हैं और अब नहीं कोई किसी पर निर्भर,
हम सब हैं आज़ाद और हमारी है यह अपनी आज़ादी ..!
जीने के लिए पहले जैसे मोहताज नहीं,
अपने दम पर हासिल की है यह आज़ादी ..!
१९४७ से शुरू हुआ था यह सफ़र,
आज ६६वें पायदान पर खड़ी है यह आज़ादी ..!
हर दौर से जुझती और उबरती,
कई संघर्षमयी पलों से गुज़री है यह आज़ादी ..!
अब जब सब स्वाधीन और स्वछन्द है,
फिर क्यूँ अब उदंड सी लगने लगी है यह आज़ादी ..!
अब बेलगाम और अनुशासनहीन सी इंसानियत,
मत्लब्परस्ति में हमबिस्तर हो गयी है यह आज़ादी ..!
लोभ-क्षोभ और राग-द्वेष में लिप्त समाज ,
किसी के हक़ को छिनना ही बन बन गयी है यह आज़ादी ..!
मिलीभगत से बिना मापदंड के व्यवयसायिक दौर में,
खुद के खोदे हुए अंधे कुएँ की तरफ बढ़ रही है यह आज़ादी ..!
खुलेआम अंधे कानून पर रिश्वत की चादर डाल,
भ्रष्ट सी सरकार खोखला सा साबित कर रही यह आज़ादी ..!
अब अगर नहीं सजग हुए ,
तो फिर कहीं इतिहास न बन जाये यह आज़ादी ..!
एकजुट हो नया बलाव लाना चाहिए,
तभी सलामत रहकर कुछ रंग खिलाएगी यह आज़ादी ..!


Its only we people who have to work towards a better India..so Lets be united & be Indian..!

Be Blessed & Be Happy :) 

Thursday, 6 February 2014

Life's First Published Poetry : दुनियादारी

This Poetry is really close to my heart as its the 1st Poetry which was published. This was written with lot of thoughts and speculations because it was not easy for me. Often, I used to write on Romance/Love but when a close buddy asked to try something different, it clicked to my mind & I decided to give a try..
So here it is..you might find lot of mistakes or grammatical errors..for which I apologize...after all it was first time :p 

Pic Courtesy : Clicked from Magazine

दुनियादारी :


दरियादिली-ए-क़वायद देखिये ,
या तो लुट जाते हैं ..
या तो लूट जाते हैं ..
भरोसा-ए-अहतियात कितना करे ,
जब वक़्त से पहले इंसान बदल जाते हैं ...! 

दौर-ए-हुजुम का चलन देखिये ,
कभी अपने से मिल जाते हैं ..
कभी अपने ही मिल जाते हैं ..
जज़्बात-ए-मियाद को क्या परखें ,
जब हालात से पहले खयालात बदल जाते हैं ...!
जनाज़ा-ए-दस्तूर देखिये ,
कभी साथ चले जाते हैं ..
कभी साथ चले आते हैं ..
पाबन्द-ए-ज़िन्दगी का मज़मा क्या कहें ,
जब मेरी मौत से पहले ही अपने बदल जाते हैं ...!
क़त्ल-ए-गाह ये ज़िन्दगी देखिये ,
कुछ खुद के लिए मर जाते हैं ..
कुछ खुद के लिए मारे जाते हैं ..
तमाशबीन-ए-जहां की क्या बात कहें ,
जब हर अक्स कभी किसी मुर्दों में बदल जाते है ....!
Pic Courtesy : Google


This Poetry is all about Worldliness.. how human life is & how they behave in daily life..how time/situation affects & how human behavior changes..actions/reactions..kindliness/humanity...reality/show-off...truthfulness/fake...
Everything was tried to capture...don't know how far I was correct...
Hope you must have liked...

Be Happy & Be Blessed! :)

ज़िन्दगी .... एक सफरनामा

Life keeps moving and so we people. Hence, thought to write a journey through which everybody goes in life. Some time you really think that till-date how much or what you have achieved and how much life has given you. Though when we come to this earth, our hands are empty but the fingers form a fist signifying to hold..to survive...& when we are dying, again our hands are empty but this time we have an open palm..signifying you have lived and now its time to leave everything. All these I have tried to say in poetic form...hope you all could relate..& do give your opinions..


ज़िन्दगी .... एक सफरनामा :

थोडा पढ़ा-लिखा और काफी कुछ सीखा ,
ज़िन्दगी को जी , ज़िन्दगी से बहुत कुछ सीखा ..
एक सफ़र जो शुरू किया था ,
घर से दूर हो कर एक मंज़िल को तय किया था ..!
छोड़ के बचपन की गलियाँ ,
वो माँ के हाथों से सजी फूलों की क्यारियाँ ,
चला था एक मुकाम के लिए ..!
छोड़ के लड़कपन का साथ ,
वो पिता के नियमों को तोड़ने की शैतानियाँ ,
चला था उस मंज़िल के लिए ..!

कदम जो रखा नए से शहर की भींड में ,
भूल सा गया था खुद को उस चकाचौंध की नींद में ..
अनजान से शहर में तो कई लोग साथ थे ,
लेकिन सब मग्न थे आगे पहुँचने की होड़ में ..!
सफ़र कटता रहा और ज़िन्दगी बसर होती रही ,
रोज़ की दौड़ धुप में मंज़िल के तरफ कदम बढ़ती रही ..
कभी हार तो कभी जीत से मुलाक़ात होती रही ,
हर मोड़ पे आगाज़ और अंजाम की परछाई साथ चलती रही ..!

एक पल ठहर के सोचा देखूँ क्या हासिल किया अब तक ,
क्या खोया क्या पाया इस ज़िन्दगी में अब तक ..!
आँखें बंद की और मुट्ठियों को खोल दिया ,
सुना आकाश दिखा और हथेली खाली थी अब तक ...!
पूछा खुदा से ये कैसा सफ़र है ,
सब कुछ मिला फिर भी कुछ हासिल क्यूँ नहीं है ..
खुदा ने बस इतना कहा ये ही तो वो ज़िन्दगी है , 
जहाँ तेरी ही ज़िन्दगी तेरी हो कर भी तेरी नहीं है ...!! 

Lot of things came into mind while writing this, not everything was possible to write but still I tried to include every possible thing. Since Life never stops so we have to keep moving with a clear determination & commitment..You never know how far you can reach..may be more than sky..or stars..Keep Rocking..Always!!

Be Blessed & Be Happy!


Pic Courtesy : Self-Clicked

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India
I share content and solutions for mental wellness at workplace! After spending a couple of decade in Retail Industry and Content writing, I am still writing! A Freelance Professional Copywriter, who is also an Author. If you are reading this, do leave your comments. Connect for paid projects. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Yahan wo har baat hai jisey aap sunne ke bajaye padhna pasand karte hain. Aapka saath milega toh har shabd ko ek manzil mil jayegi!