Wednesday, 5 October 2016

हर चेहरा... ।।

हर चेहरा...।।

हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
फिर भी हम सबसे एक सवाल होता है।

जो दौड़ रहा है हम सबकी रगों में लहू,
हर जिस्म में वो क्यों सिर्फ लाल होता है।

जिंदगी रहने तक जो इतने घाव देते हो,
फिर जनाज़े पर क्यों नहीं बवाल होता है।

ज़रा देखना कभी रोटियों को बाँट कर,
चँद निवालों से यहाँ भूख हलाल होता है।

हर उरूज का एक दस्तूर है यहाँ जानिब,
उन्ही रास्तों से वापसी में ज़वाल होता है।

©Abhilekh

नोट: पहली लाइन : "हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है" यह मुन्नवर राणा जी के नज़्म से ली गयी है।

Thursday, 29 September 2016

Lyric.... न आग़ाज़, न अंजाम..!

न आग़ाज़, न अंजाम..!!
इकतरफ़ा इश्क़ के सफर में,
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
बुझ कर भी उम्मीद से,
अनजाने एहसास का,
वजूद तो होता है, कोई नाम नहीं होता।
इकतरफ़ा .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
खुद से रुस्वा हो कर,
जज़्बातों को बिना उधेड़े,
ऐसी बेवफ़ाई पर इल्ज़ाम नहीं होता।
इकतरफ़ा .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
तन्हायी भी होती है,
परछायी भी होती है,
मेरे मैखाने में कोई जाम नहीं होता।
इकतरफ़ा इश्क़ .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
©Abhilekh

Monday, 26 September 2016

घर बनाने में...।

घर बनाने में...।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
और लुटे जाते है रह-बर बनाने में।

स्याह चेहरों पर देखो रंगीन नक़ाब,
अब क़त्ल होते है खंजर बनाने में।

कमज़र्फ है यहाँ अब सबकी आदतें,
एक अंदाज़ है अब नज़र चुराने में।

कुरेदने की कवायद है कुछ ऐसी,
मिलते है कई एक शज़र गिराने में।

अपनों ने खींच ली है वहाँ सरहद,
जहाँ ईंटें जुडी थी शहर बसाने में।

©Abhilekh

कृपया ध्यान दें , ऊपर की एक पंक्ति बशीर बद्र साब की है "लोग टूट जाते है एक घर बनाने में"।

Saturday, 24 September 2016

जवाब क्या देते...।

जवाब क्या देते...।

खुदगर्ज़ी के मारे थे, हिसाब क्या देते,
सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते।

संगदिली में तुम मसरूफ रहे इस कदर,
तुम्हारी वफ़ाओं का हिसाब क्या देते।

फिर से बुत-ए-आदम जब हो चुका हूँ
अपनी तन्हाईयों को हिजाब क्या देते।

मेरे ही ज़ख्म कुरेदे हैं मेरी रूह को,
अपनी आवारगी को ख्वाब क्या देते।

भीगती है बारिश भी अश्कों में खूब,
तेरी इस इनायत को शराब क्या देते।

©Abhilekh

नोट: सवाल सारे गलत थे, जवाब क्या देते... सिर्फ यह मुनीर नियाज़ी जी के ग़ज़ल से ली गयी है।

Wednesday, 21 September 2016

आज उजाला होगा....।

आज उजाला होगा ....।

Gulzaar saab ki 1 line se kaafiya milana tha, usi basis pr likhne ki koshish ki thi, aap sabhi bataiye kaisi hai...

चाँदनी के सिर से सरका आज दुशाला होगा,
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा।

अमावस भी बादलों की ओट से झाँका होगा,
तभी चाँदनी ने चाँद को घर से निकाला होगा।

रात की चादर में लिपटे हैं ऐसे इतने सितारे,
जैसे किसी महबूब ने ओढ़नी गिराया होगा।

शहर की रौशनी भी चमक उठी है कुछ यूँ
शमा को ज़रूर आफताब नज़र आया होगा।

तमाम कसीदें गढ़ देता हूँ अक्सर बेहयायी में,
ज़रा देखो, लफ़्ज़ों ने कैसे आज़माया होगा।।

©Abhilekh

Saturday, 28 November 2015

Lyrics: रात सी ज़िन्दगी।

रात सी ज़िन्दगी।
Ek shaam se judaa ho chukaa..
Ab ek bhor se bichhadna hai..
In faaslon mein khokar khud ko...
Mujhe Gumshuda raat sa guzarna hai...

एक शाम से जुदा हो चुका..
अब एक भोर से बिछड़ना है..
इन फासलों में खोकर खुद को...
मुझे गुमशुदा रात सा गुज़रना है..!

Taaron ki tanahayion mein..
Chaand ke fareb mein..
Jugnon ki beparwahi ke saath..
Mujhe tanhaa raat sa guzarna hai..

तारों की तन्हाईयों में..
चाँद के फरेब में..
जुगनुओं की बेपरवाही के साथ..
मुझे तन्हा रात सा गुज़रना है..

Shaakhon ki kaanaafusi hai..
Sard hawaon mein Chaaplusi hai...
Shama jal na jaaye kahin..
Mujhe Thithurte waqt sa guzarna hai..

शाखों की कानाफूसी है..
सर्द हवाओं में चापलूसी है..
शमा जल न जाए कहीं..
मुझे ठिठुरते वक़्त सा गुज़रना है..!!

©Abhilekh

Thursday, 5 November 2015

Lyrics: कारवाँ / Karwaan

कारवाँ
Ek karwaan tha jo guzar gaya,
Mera hamsafar tanha guzar gaya..
Kaha tha usne intezaar ke liye,
Aur intezar bewaqt guzar gaya..

एक कारवाँ था जो गुज़र गया,
मेरा हमसफ़र तन्हा गुज़र गया..
कहा था उसने इंतज़ार के लिए,
और इंतज़ार बे-वक़्त गुज़र गया..

Kaha tha chalenge saath har pal,
Waqt ke bahane har ehsaas guzar gaya..
Ab har hulchal mein hai khaamoshi,
Bas us tanhai ka safar guzar gaya..

कहा था चलेंगे साथ हर पल,
वक़्त के बहाने हर एहसास गुज़र गया..
अब हर हलचल में है खामोशी,
बस उस तन्हाई का सफ़र गुज़र गया..

Chhoo kar guzarti hai teri khusbu,
Jaise teri yaadon ka mausam guzar gaya..
Ab ek karwaan nikla hai fir se,
Ya mai hi khada raha aur sara jahaan guzar gaya...!!

छू कर गुज़रती है तेरी खुशबु,
जैसे तेरी यादों का मौसम गुज़र गया..
अब एक कारवाँ निकला है फिर से,
या मैं ही खड़ा रहा और सारा जहाँ गुज़र गया..!!

©Abhilekh

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