Yun toh pehle main sirf aashiqui pe likhta rahta tha, lekin ek bar ek aisi pic se nazar mili ke khud ko likhne se rok nhi paya tha & tab mere likhne ke maayne badal gaye..! Is Tasvir ne mujhe kaafi kuch sochne pr majbur kia & tab jo bhi dil-o-dimaag mein aaya usey ukera aur logon ke saamne rakha...aap bhi apni pratikriya zarur dijiye.
Pesh-e-Khidmat hai :
***** मेरे अपने ....!*****
तुम भी मेरे जैसे दिखते हो
मेरे ही जैसे लिबास में
मेरे ही समाज में
हर पल मेरे साथ रहते हो ...
किस्मत का दोष है
या फिर करनी का दोष है
जिसने दुनिया में मुझे ऐसे लाया
या फिर उस मौला का दोष है ...
ज़िन्दगी की दौड़ में तुम भी हो
हर साँस के कर्ज़दार तुम भी हो
फिर ऐसा क्यों है
तुम्हे हर ऐश-ओ-आराम से नवाज़ा गया
और मुझे ज़िल्लत में पाला गया ...
क्या गरीबी वो औकात है जिसकी कोई जात नही
या अमीरी वो आलम है जिसमे कभी रात नही
एक ही खुदा ने बनाई ये इंसानी जिस्म
फिर इंसानियत में कोई समानता क्यों नही ...
हम रोज़ आमने सामने
गुज़रते हुए एक दुसरे को देखते है
तुम हमें धिक्कार के नज़र फेरते हो
हम तुम्हे सपनो की तरह देखते है ...
ज़िन्दगी दी है उस खुदा ने
बस उसी को याद कर जिए जाते है ..
हर तपन को जाड़े की धुप समझ
बिना रुके बढे जाते है ...
क्यूंकि हम जो रुक गए
तो तुम्हारे ऐश-ओ-आराम खलल पड़ जाते हैं !
Pesh-e-Khidmat hai :
***** मेरे अपने ....!*****
तुम भी मेरे जैसे दिखते हो
मेरे ही जैसे लिबास में
मेरे ही समाज में
हर पल मेरे साथ रहते हो ...
किस्मत का दोष है
या फिर करनी का दोष है
जिसने दुनिया में मुझे ऐसे लाया
या फिर उस मौला का दोष है ...
ज़िन्दगी की दौड़ में तुम भी हो
हर साँस के कर्ज़दार तुम भी हो
फिर ऐसा क्यों है
तुम्हे हर ऐश-ओ-आराम से नवाज़ा गया
और मुझे ज़िल्लत में पाला गया ...
क्या गरीबी वो औकात है जिसकी कोई जात नही
या अमीरी वो आलम है जिसमे कभी रात नही
एक ही खुदा ने बनाई ये इंसानी जिस्म
फिर इंसानियत में कोई समानता क्यों नही ...
हम रोज़ आमने सामने
गुज़रते हुए एक दुसरे को देखते है
तुम हमें धिक्कार के नज़र फेरते हो
हम तुम्हे सपनो की तरह देखते है ...
ज़िन्दगी दी है उस खुदा ने
बस उसी को याद कर जिए जाते है ..
हर तपन को जाड़े की धुप समझ
बिना रुके बढे जाते है ...
क्यूंकि हम जो रुक गए
तो तुम्हारे ऐश-ओ-आराम खलल पड़ जाते हैं !
बहुत ही मार्मिक शब्द हैं; सच में कुछ लोगो के लिए आराम भारी जिंदगी प्यार भारी जिंदगी इक ख्वाब ही तो हैं...
ReplyDeleteअच्छे वस्त्र, अच्छा ख़ानपान, स्कूल खिलोने और कभी कभी दवा भी इक ख्वाब ही तो हैं....
यूँ तो आपके शब्द सदैव ह्रदयस्पर्शी और सुंदर रहे परंतु आज ये समाज़ के उस रूप को उजागर कर रहे हैं जिसे देखते तो सब है मगर बस मुँह फेर लेते हैं [जैसा की आपने कहा] / हर तस्वीर दोरूखी होती हैं आज आपके शब्दो ने समाज़ की दूसरे रुख़ को भी आईना दिखा ही दिया/
thnq Ritu..bilkul sahi baat pakdi tumne..is pic ko jab pehli baar dekha to aise hi khayal aagaye..tab ye laga ki ham bhi kitne banawati hai..aapsi pyaar aur samaanta ki baat krte hai lekin is duri ko paatne k liye koi koshish nhi karte..maine bas ye kahna chaha hai ki samaj ka har insaan ek sapna sanjoye rkhta hai..koi chhota bada nhi hai..! Thnq once again..!
Deleteबहुत ही मर्मस्पर्शी है ये चित्र ! ऐसे ही एक चित्र और मैने देखा था.. एक बाप दुध मुँहे बच्चे को पीठ पर बान्ध कर रिक्शा चला रहा था !
ReplyDeleteऔर एक .. हाथ कटे हुई माँ को उसका नन्हा बच्चा अपने हाथ से निवाला बना कर खिला रहा था !
स्रजन:
देख कर तो कितने तमाशबीन ही बन रह जाते हैं
सृजक उस भाव के मर्म को संप्रेषित किये जाते हैं
ऐसे ही प्रयास कर के हर वर्ग के गमों को कहना
स्रजनशील व्यक्तीत्व आपकी प्रतिभा हम पाते हैं
बहुत बहुत बहुत शुभकामनायें !
बहुत ही भावप्रधान ..!
सादर
अनुराग
bahut bahut shukriya Anurag Bhai..aap to pehle bhi in panktiyon se rubaru ho chuke hai..aapne sahi baat kahi ki sahitya ke maadhyam se hi ham aise gamon ko saamne la paatey hain..bahut bahut abhaar..aashirwad banaye rakhiye..!
DeleteZindgi ek bahut bada sangharsh hai aur yeh ham sab ke hise main aata hai wo bat alag hai ki kite samay ke liye aur kitni matra mai aata hai
ReplyDeletehan zindgi ek shangharsh hai shangrash hai.........
Km shbdon mein aapne sahi aur sachhi baat kahi Pammi ji..bahut bahut shukriya
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