Monday, 24 October 2016

ऐसी रात...।

ऐसी रात...


ऐसी तेज़ हवा और ऐसी रात नहीं देखी ...
2 बारिशों में स्याह ऐसी रात नहीं देखी,

बरस कर दोनों क्या न कह गए हमसे ...
कोरे अश्क़ों में घुली ऐसी बात नहीं देखी,

हर बूँद थिरक कर दे रही थी सिहरन ...
बदगुमानी की ऐसी बरसात नहीं देखी,

भीगते हैं तर-ब-तर तेरी दहलीज पर ...
रंजिशि की हमने ऐसी ज़ात नहीं देखी,

आज घुल जाने दो मुझे ख़िज़ाओं में ...
किसी भीगे कब्र की ऐसी रात नहीं देखी।।

©Abhilekh

Saturday, 15 October 2016

छोड़ दे...।।

छोड़ दे...।।

रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे,
ओस के तपिश में जलना छोड़ दे।।

अब सितारे भी देखते है तुझे तन्हा
उम्मीद से दुआ में कहना छोड़ दे।।

सहर की धूप तेरा मुकाम बनेगी
अब इस चाँदनी में रहना छोड़ दे।।

जो दबा है दर्द उकेर दे लफ़्ज़ों में
यूँ रोज़ाना अश्क़ों में बहना छोड़ दे।।

अब यहाँ फ़रेब में वफ़ा लाज़मी है,
दूर होकर हुजूम से चलना छोड़ दे।।

©Abhilekh

Please note: 1st line Waseem Barlewi Ji ki nazm se li gayi hai...

Sunday, 9 October 2016

Lyric.. मोहब्बत नहीं मिलती...!!

मोहब्बत नहीं मिलती..!!
फ़क़त किसी को चाहने से मोहब्बत नहीं मिलती,
दिल में ना हो जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती।
चँद लम्हे गुज़ार लेने से,
लटों को संवार देने से,
गेसुओं में खोकर मोहब्बत नहीं मिलती,
जिस्म बिकते है, मोहब्बत नहीं मिलती।
दिल में न हो....।।
जब सीरत बदनसीब हो,
और फ़रेब करीब हो,
सूरत की चमक में मोहब्बत नहीं मिलती,
सिलवटें मिलती है, मोहब्बत नहीं मिलती।
दिल में न हो...।।
रौनकें अब हैं मशगूल,
और इश्क़ है फ़िज़ूल,
एहसासों में अब मोहब्बत नहीं मिलती,
सब खो कर भी मोहब्बत नहीं मिलती।
दिल में न हो...।।
©Abhilekh

Friday, 7 October 2016

सब तेरे नाम...

सब तेरे नाम...

यह शफ़क़ शाम हो रही है अब,
शब भी तेरे नाम हो रही है अब।

ठहर जाओ दो घडी मेरी खातिर,
इंतज़ार सर-ए-आम हो रही है अब।

अभी तो रौशन हुई है महफ़िल,
शाम रँग-ए-जाम हो रही है अब।

तेरे लबों से छलक कर बिखरा हूँ,
चाहतें मेरी पैग़ाम हो रही है अब।

एक रात बना कर भुला दो मुझे,
यहाँ सहर नीलाम हो रही है अब।

©Abhilekh

Note: 1st line is from Dushyant Kumar's

Wednesday, 5 October 2016

हर चेहरा... ।।

हर चेहरा...।।

हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है
फिर भी हम सबसे एक सवाल होता है।

जो दौड़ रहा है हम सबकी रगों में लहू,
हर जिस्म में वो क्यों सिर्फ लाल होता है।

जिंदगी रहने तक जो इतने घाव देते हो,
फिर जनाज़े पर क्यों नहीं बवाल होता है।

ज़रा देखना कभी रोटियों को बाँट कर,
चँद निवालों से यहाँ भूख हलाल होता है।

हर उरूज का एक दस्तूर है यहाँ जानिब,
उन्ही रास्तों से वापसी में ज़वाल होता है।

©Abhilekh

नोट: पहली लाइन : "हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है" यह मुन्नवर राणा जी के नज़्म से ली गयी है।

Thursday, 29 September 2016

Lyric.... न आग़ाज़, न अंजाम..!

न आग़ाज़, न अंजाम..!!
इकतरफ़ा इश्क़ के सफर में,
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
बुझ कर भी उम्मीद से,
अनजाने एहसास का,
वजूद तो होता है, कोई नाम नहीं होता।
इकतरफ़ा .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
खुद से रुस्वा हो कर,
जज़्बातों को बिना उधेड़े,
ऐसी बेवफ़ाई पर इल्ज़ाम नहीं होता।
इकतरफ़ा .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
तन्हायी भी होती है,
परछायी भी होती है,
मेरे मैखाने में कोई जाम नहीं होता।
इकतरफ़ा इश्क़ .....
आग़ाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता।
©Abhilekh

Monday, 26 September 2016

घर बनाने में...।

घर बनाने में...।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
और लुटे जाते है रह-बर बनाने में।

स्याह चेहरों पर देखो रंगीन नक़ाब,
अब क़त्ल होते है खंजर बनाने में।

कमज़र्फ है यहाँ अब सबकी आदतें,
एक अंदाज़ है अब नज़र चुराने में।

कुरेदने की कवायद है कुछ ऐसी,
मिलते है कई एक शज़र गिराने में।

अपनों ने खींच ली है वहाँ सरहद,
जहाँ ईंटें जुडी थी शहर बसाने में।

©Abhilekh

कृपया ध्यान दें , ऊपर की एक पंक्ति बशीर बद्र साब की है "लोग टूट जाते है एक घर बनाने में"।

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